वेद र्इश्वरोक्त
हैं, इनमें सत्यविद्या और पक्षपात रहित धर्म का ही प्रतिपादन है, इससे चारों वेद नित्य हैं ।
ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका
अन्यच्च वैशेषिकसूत्राकार: कणादमुनिरप्यत्राह---
‘तद्वचनादाम्नायस्य प्रामाण्यम् ।।’ वैशेषिके अ॰१ । सू॰३।।
भाषार्थ---इसी प्रकार वैशेषिक शास्त्रा में कणाद मुनि ने भी कहा है---(तद्वचना॰) वेद र्इश्वरोक्त
हैं, इनमें सत्यविद्या और पक्षपात रहित धर्म का ही प्रतिपादन है, इससे चारों वेद नित्य हैं । ऐसा ही
सब मनुष्यों का मानना उचित है क्योंकि र्इश्वर नित्य है । इससे उसकी विद्या भी नित्य है ।
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