वेद नि्त्यत्व विचार
"ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका"
अत्रा वेदानां नित्यत्वे व्याकरणशास्त्रादीनां साक्ष्यथद्व प्रमाणानि लिख्यन्ते । तत्राह
महाभाष्यकार: पतन्जलिमुनि:---
‘नित्या: शब्दा नित्येषु शब्देषु कूटस्थैरविचालिभिर्वणरैर्भवितव्यमनपायोपजनविकारिभिरिति। इदं वचनं प्रथमाम्किमारभ्य बहुषु स्थलेषु व्याकरणमहाभाष्येण्स्ति ।
भाषार्थ === यह जो वेदों के नित्य होने का विषय है इसमें व्याकरणादि शास्त्रों का प्रमाण साक्षी
के लिए लिखते हैं । इनमें से जो व्याकरण शास्त्रा है सो संस्कृत और भाषाओं के सब शब्दविद्या
का मुख्य मूल प्रमाण है । उसके बनाने वाले महामुनि पाणिनि और पतन्जलि हैं । उनका ऐसा मत
है कि---’सब शब्द नित्य हैं, क्योंकि इन शब्दों में जितने अक्षरादि अवयव हैं वे सब कूटस्थ अर्थात्
विनाशरहित हैं, और वे पूर्वापर विचलते भी नहीं, उनका अभाव वा आगम कभी नहीं होता ।’ इससे
वैदिक अर्थात् जो वेद के शब्द और वेदों से जो शब्द लोक में आये हैं वे लौकिक कहाते हैं, वे भी
सब नित्य ही होते हैं क्योंकि उन शब्दों के ममय में सब वर्ण अविनाशी और अचल हैं, तथा इनमें
लोप आगम और विकार नहीं बन सकते, इस कारण से पूर्वोक्त शब्द नित्य हैं ।
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