शनिवार, 31 मई 2014

वेद नित्य है--- "ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका"

वेद नित्य है---   

 "ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका"


प्रश्न--जब सब जगत् के परमाणु अलग अलग होके कारणरूप हो जाते हैं तब जो

कार्यरूप सब स्थूल जगत् है उसका अभाव हो जाता है, उस समय वेदों के पुस्तकों का भी अभाव

हो जाता है, फिर वेदों को नित्य क्यों मानते हो ?


उत्तर---यह बात पुस्तक, पत्रा, मसी और अक्षरों की बनावट आदि पक्ष में घटती है तथा हम लोगों

के ​क्रियापक्ष में भी बन सकती है, वेदपक्ष में नहीं घटती, क्योंकि वेद तो शब्द, अर्थ और सम्बन्ध्स्वरूप

ही हैं, मसी, कागज, पत्रा, पुस्तक और अक्षरों की बनावटरूप नहीं हैं । यह जो मसी आदि द्रव्य और

लेखनादि ​क्रिया है सो मनुष्यों की बनार्इ है, इससे अनित्य है । और र्इश्वर के ज्ञान में सदा बने रहने

से वेदों को हम लोग नित्य मानते हैं । इससे क्या सिद्ध हुआ कि पढ़ना-पढ़ाना और पुस्तक के अनित्य

होने से वेद अनित्य नहीं हो सकते, क्योंकि वे बीजा। कुर न्याय से र्इश्वर के ज्ञान में नित्य वर्नमान

रहते हैं । सृष्टि की आदि में र्इश्वर से वेदों की प्रसिद्धिहोती है और प्रलय में जगत् के नहीं रहने से

उनकी अप्रसिद्धिहोती है, इस कारण से वेद नित्यस्वरूप ही बने रहते हैं ।

जैसे इस कल्प की सृष्टि में शब्द, अक्षर, अर्थ और सम्बन्ध् वेदों में हैं इसी प्रकार से पूर्वकल्प

में थे और आगे भी होंगे, क्योंकि जो र्इश्वर की विद्या है सो नित्य एक ही रस बनी रहती है । उनके

एक अक्षर का भी विपरीतभाव कभी नहीं होता । सो ऋग्वेद से लेके चारों वेदों की संहिता अब

जिस प्रकार की हैं कि इनमें शब्द, अर्थ, सम्बन्ध्, पद और अक्षरों का जिस व्म से वर्नमान है इसी

प्रकार का व्म सब दिन बना रहता है, क्योंकि र्इश्वर का ज्ञान नित्य है, उसकी वृद्धि क्षय और विपरीतता कभी नहीं होती । इस कारण से वेदों को नित्यस्वरूप ही मानना चाहिए ।

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