योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।2।
‘‘चित्त की वृत्तियों का निरोध योग है।’’ महर्षि पातंजलि कहते हैं कि
अनुशासित मन अर्थात् बाह्य संकल्पों, विकल्पों को न करने वाला साधक
अपनी वृत्तियों को पूर्ण रूप से निरोध करने में सफलता प्राप्त करता है। वृत्तियाँ
अनन्त हैं काम की, क्रोध की, लोभ की, मोह की, राग की, द्वेष की, श्रेष्ठ की,
अश्रेष्ठ की, मान की, अपमान की, मित्र की, शत्रु की, अपने-पराये आदि की
अनन्त वृत्तियां हैं। इन सम्पूर्ण वृत्तियों के निरोध का नाम ही योग है। निरोध के
परिणाम में साधक को क्या प्राप्त होता है? इस पर कहते हैं-
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