शुक्रवार, 30 मई 2014

योग दर्शन३

 तदा द्रष्टु: स्वरूपे·वस्थानम्।।3।।
समाधि पाद
सम्पूर्ण वृत्तियों के निरोध के परिणाम स्वरूप दृष्टा(आत्मा) अपने
स्वरूप को प्राप्त हो जाता है।
किसी पात्र में जल भरा है। जब तक उसमें लहरें हैं तब तक उसमें
कोर्इ भी अपना प्रतिबिंब नहीं देख सकता। लहरों के सर्वथा शान्त होते ही
प्रतिबिंब स्पष्ट दिखार्इ देने लगता है। मनुष्य के अन्त:करण में वृत्तियों के रूप में
जो अनन्त लहरें पैदा होती रहती हैं, उनके रहते कोर्इ भी र्इश्वर का दर्शन प्राप्त
नहीं कर सकता। उनके सर्वथा शान्त होते ही योगी अपने स्वरूप में स्थित हो
जाता है।

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