Part 2
घृत की तीन
समिधायें
रखने
के
मंत्र
इस मंत्र से
प्रथम
समिधा
रखें।
ॐ अयन्त इध्म
आत्मा
जातवेदस्तेनेध्यस्व
वर्द्धस्व
चेद्ध
वर्धयचास्मान्
प्रजयापशुभिर्ब्रह्मवर्चसेनान्नाद्येन
समेधय स्वाहा ।
इदमग्नेय
जातवेदसे
– इदं
न
मम
॥१॥
मन्त्रार्थ-
मैं सर्वरक्षक परमेश्वर
का स्मरण करता
हुआ कामना करता
हूँ कि हे
सब उत्पन्न पदार्थों
के प्रकाशक अग्नि!
यह समिधा तेरे
जीवन का हेतु
है ज्वलित रहने
का आधार है।उस
समिधा से तू
प्रदीप्त हो, सबको
प्रकाशित कर और
सब को यज्ञीय
लाभों से लाभान्वित
कर, और हमें
संतान से, पशु
सम्पित्त से बढ़ा।ब्रह्मतेज
( विद्या, ब्रह्मचर्य एवं अध्यात्मिक
तेज से, और
अन्नादि
धन-ऐश्वयर् तथा भक्षण
एवं भोग- सामथ्यर्
से समृद्ध कर।
मैं त्यागभाव से
यह समिधा- हवि
प्रदान करना चाहता
हूँ | यह आहुति
जातवेदस संज्ञक अग्नि के
लिए है, यह
मेरी नही है
||1||
इन दो मन्त्रों
से
दूसरी
समिधा
रखें
ओं समिधाग्निं दुवस्यत
घृतैर्बोधयतातिथम्
|
आस्मिन हव्या जुहोतन
स्वाहा
|
इदमग्नये इदन्न मम
||२||
मन्त्रार्थ-
मैं सर्वरक्षक परमेश्वर
का स्मरण करते
हुए वेद के
आदेश का कथन
करता हूँ कि
हे मनुष्यो! समिधा
के द्वारा यज्ञाग्नि
की सेवा करो
-भक्ति से यज्ञ
करो।घृताहुतियों से गतिशील
एवं अतिथ
के समान प्रथम
सत्करणीय यज्ञाग्नि को प्रबुद्ध
करो, इसमें हव्यों
को भलीभांति अपिर्त
करो।मैं त्यागभाव से यह
समिधा- हवि प्रदान
करना चाहता हूँ।
यह आहुति यज्ञाग्नि
के लिए है,
यह मेरी नहीं
है
सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं
तीव्रं
जुहोतन
अग्नये
जातवेदसे
स्वाहा।
इदमग्नये जातवेदसे इदन्न
मम
||३||
मन्त्रार्थ-
मैं सर्वरक्षक परमेश्वर
के स्मरणपूर्वक वेद
के आदेश का
कथन करता हूँ
कि हे मनुष्यों!
अच्छी प्रकार प्रदीप्त
ज्वालायुक्त जातवेदस् संज्ञक अग्नि
के लिए वस्तुमात्र
में व्याप्त एवं
उनकी
प्रकाशक अग्नि के लिए
उत्कृष्ट घृत की
आहुतियाँ दो . मैं
त्याग भाव से
समिधा की आहुति
प्रदान करता हूँ
यह आहुति जातवेदस्
संज्ञक माध्यमिक अग्नि के
लिए है यह
मेरी नहीं।।३।। इस
मन्त्र
से तीसरी समिधा
रखें।
तन्त्वा समिदि्भरङि्गरो घृतेन
वर्द्धयामसि
।
बृहच्छोचा यविष्ठय स्वाहा।।इदमग्नेऽङिगरसे
इदं
न
मम।।४।।
मन्त्रार्थ
- मैं सर्वरक्षक परमेश्वर
का स्मरण करते
हुए यह कथन
करता हूँ कि
हे तीव्र प्रज्वलित
यज्ञाग्नि! तुझे हम
समिधायों से और
धृताहुतियों से बढ़ाते
हैं।हे पदार्थों को मिलाने
और पृथक करने
की
महान शक्ति से सम्पन्न
अग्नि ! तू बहुत
अधिक प्रदीप्त हो,
मैं त्यागभाव से
समिधा की आहुति
प्रदान करता हूँ
।यह अंगिरस संज्ञक
पृथिवीस्थ अग्नि के लिए
है यह मेरी
नहीं है।
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