आरोप २
: यदि ऐसा ही है तो वेदों में आए – अश्वमेध, नरमेध, अजमेध, गोमेध क्या हैं ? ‘मेध‘
का मतलब है - ‘ मारना‘, यहाँ तक कि वेद तो नरमेध की बात भी करते हैं?
उत्तर:
‘ मेध’ शब्द का अर्थ – ’ हिंसा’ ही नहीं है. ‘मेध’ शब्द- बुद्धि पूर्वक कार्य करने
को प्रकट करता है. मेध- ‘ मेधृ – सं – ग – मे’ से बना है. इसलिए, इस का अर्थ – मिलाप
करना, सशक्त करना या पोषित करना भी है. (देखें – धातु पाठ)
जब यज्ञ
को अध्वर अर्थात ‘हिंसा रहित‘ कहा गया है, तो उस के सन्दर्भ में ‘ मेध‘ का अर्थ हिंसा
क्यों लिया जाये? बुद्धिमान व्यक्ति ‘मेधावी‘ कहे जाते हैं और इसी तरह, लड़कियों का
नाम मेधा, सुमेधा इत्यादि रखा जाता है. तो ये नाम क्या उनके हिंसक होने के कारण रखे
जाते हैं या बुद्धिमान होने के कारण ?
शतपथ १३.१.६.३
और १३.२.२.३ स्पष्ट कहता है कि – राष्ट्र के गौरव, कल्याण और विकास के लिए किये जाने
वाले कार्य ‘अश्वमेध’ हैं. शिवाजी, राणा प्रताप, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक, चन्द्र
शेखर आजाद, भगत सिंह आदि हमारे महान देश भक्त, क्रांतिकारी वीरों ने राष्ट्र रक्षा
के लिए अपने जीवन आहूत करके अश्वमेध यज्ञ ही किया था.
अन्न को
दूषित होने से बचाना, अपनी इन्द्रियों को वश में रखना, सूर्य की किरणों से उचित उपयोग
लेना, धरती को पवित्र या साफ़ रखना -‘गोमेध‘ यज्ञ है. ‘ गो’ शब्द का एक अर्थ – ‘ पृथ्वी’
भी है. पृथ्वी और उसके पर्यावरण को स्वच्छ रखना ‘गोमेध’ है. (देखें - निघण्टू १.१,
शतपथ १३.१५.३)
मनुष्य की
मृत्यु के बाद, उसके शरीर का वैदिक रीति से दाह संस्कार करना - नरमेध यज्ञ है. मनुष्यों
को उत्तम कार्यों के लिए प्रशिक्षित एवं संगठित करना भी नरमेध या पुरुषमेध या नृमेध
यज्ञ कहलाता है.
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