गुरुवार, 22 मई 2014

आर्यो को ही हिन्दु सम्बोधित किया जाता है

''''''''''''''''''''आर्यो को ही हिन्दु सम्बोधित किया जाता है------------------
भारत वर्ष का हिन्दू नाम क्या तुम्हारे पुरखो ने रखा यह उन लोगो ने रखा है जो हमारे भारत वर्ष से ईर्ष्या , द्वेश करते थे क्या तुम सभी अपने आप को हिन्दू कहते हो या आर्य क्योकि भारतवर्ष मे जो निवास करते थे वे आर्य ही कहलाते हैं कृष्ण आर्य सही कह रहे हैं।
आर्य कोई जाती या धर्म नही बल्की आर्यावर्त मे रहने वाले लोगो को कहते थे हम सब आर्यो की हि सन्तान हैं देखो वेद के प्रमाण देता हू।
भगवान ने स्वयं वेद में आर्य कौन है
और आर्य बनाने का उपाय प्रश्नोत्तर के रूप मे दे दिया है
"
सम्पूर्ण जगत को आर्य बनाओ "
इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वार्यम
अपघ्रन्तो अराव्णः ऋग्वेद /६३/
अर्थात - हे परम ऐश्वर्ययुक्त आत्मज्ञानी ! तुम आत्म शक्ति का विकास करते हुए गतिशील , प्रमादरहित होकर कृपणता , अदानशीलता , अनुदारता , ईर्ष्या , आदि
का विनाश करते हुए आर्य बनो और सारे संसार को आर्य बनाओ
प्रमाण >
निरूक्त . खण्ड २६ से--------------------------
आर्य ईश्वरपुत्रः
अर्थात आर्य ईश्वर के पुत्र हैं
प्रमाण >
ऋग्वेद से---------------------------------
अहं भूमिमददामार्य ४।२६।२
जो लोग हिन्दू आर्य अलग मानते है उनके लिए---------------------------------------------------
भारत वर्ष का हिन्दू नाम क्या तुम्हारे पुरखो ने रखा यह उन लोगो ने रखा है जो हमारे भारत वर्ष से ईर्ष्या , द्वेश करते थे क्या तुम सभी अपने आप को हिन्दू कहते हो या आर्य क्योकि भारतवर्ष मे जो निवास करते थे वे आर्य ही कहलाते हैं कृष्ण आर्य सही कह रहे हैं।
आर्य कोई जाती या धर्म नही बल्की आर्यावर्त मे रहने वाले लोगो को कहते थे हम सब आर्यो की हि सन्तान हैं देखो वेद के प्रमाण देता हू।
भगवान ने स्वयं वेद में आर्य कौन है
और आर्य बनाने का उपाय प्रश्नोत्तर के रूप मे दे दिया है
"
सम्पूर्ण जगत को आर्य बनाओ "
इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वार्यम
अपघ्रन्तो अराव्णः ऋग्वेद /६३/
अर्थात - हे परम ऐश्वर्ययुक्त आत्मज्ञानी ! तुम आत्म शक्ति का विकास करते हुए गतिशील , प्रमादरहित होकर कृपणता , अदानशीलता , अनुदारता , ईर्ष्या , आदि
का विनाश करते हुए आर्य बनो और सारे संसार को आर्य बनाओ
प्रमाण >
निरूक्त . खण्ड २६ से--------------------------
आर्य ईश्वरपुत्रः
अर्थात आर्य ईश्वर के पुत्र हैं
प्रमाण >
ऋग्वेद से---------------------------------
अहं भूमिमददामार्य ४।२६।२
अर्थात ईश्वर आदेश करता है कि मै इस भूमि का राज्य आर्यो के लिए प्रदान करता हूं
प्रमाण >
मनुस्मृति से-----------------------------------------
मन्त्र २।१७।२२ का अर्थ
अर्थ है-- सरस्वती ( सिन्धु ) और दृष्द्व्ती ( ब्रह्मपुत्र ) इन दो देव नदियो के मध्य मे तथा पूर्वसमुद्र ( बंगाल की खाडी ) और पश्चिम समुद्र ( अरब सागर ) के मध्य मे तथा हिमालय पर्वत शृंखला और विन्ध्याचल पर्वतमाला के विस्तार पर्यन्त जो देश बसा हुआ है उसे देवों द्वारा बसाया हुआ होने से ' देवभूमि ' ब्रह्म ( वेद ) का देश ( आवर्त्त ) होने से ' ब्रह्मावर्त " , आर्यो का देश होने से आर्यावर्त और भरतवंशियों का होने से " भरतवर्ष " कहाते है।

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