महर्षि मनु ने धर्म के जो लक्षण लिखे हैं , वे सार्वभौम हैं । यथा –
१. धृतिः – सदा धैर्य रखना । तनिक – तनिक सी बातों में अधीर न होना ।
२. क्षमा – निन्दा – स्तुति , मान – अपमान , हानि – लाभ में सहनशील रहना ।
३. दमः – चंचल मन को वश में करके उसे अधर्म की ओर जाने से रोकना ।
४. अस्तेयम – चोरी – त्याग । बिना स्वामी की आज्ञा के उनके किसी पदार्थ के लेने की इच्छा भी न करना ।
५. शौचम – बाहर और भीतर की पवित्रता । स्नान , वस्त्र – प्रक्षालन आदि से बाहर की और लोभ , क्रोध , मोह , ईर्ष्या , द्वेष आदि के त्याग से अन्दर की शुद्धता रखना ।
६. इन्द्रियनिग्रह – सभी इन्द्रियों को अधर्माचरण से रोककर धर्म – मार्ग में चलाना ।
७. धीः – मादक द्रव्यों के त्याग , सत्संग और योगाभ्यास से बुद्धि को बढाना ।
८. विद्या – पृथिवी से लेकर परमेश्वर – पर्यन्त सभी पदार्थों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना विद्या है।
९. सत्यम – जो पदार्थ जैसा है , उसे वैसा ही जानना ,मानना ,बोलना और लिखना सत्य कहलाता है।
१०. क्रोध न करना । सदा शांत और प्रसन्न रहना ।
इन दश लक्षणों वाले धर्म का पालन सभी को करना चाहिये ।
११. अहिंसा
१. धृतिः – सदा धैर्य रखना । तनिक – तनिक सी बातों में अधीर न होना ।
२. क्षमा – निन्दा – स्तुति , मान – अपमान , हानि – लाभ में सहनशील रहना ।
३. दमः – चंचल मन को वश में करके उसे अधर्म की ओर जाने से रोकना ।
४. अस्तेयम – चोरी – त्याग । बिना स्वामी की आज्ञा के उनके किसी पदार्थ के लेने की इच्छा भी न करना ।
५. शौचम – बाहर और भीतर की पवित्रता । स्नान , वस्त्र – प्रक्षालन आदि से बाहर की और लोभ , क्रोध , मोह , ईर्ष्या , द्वेष आदि के त्याग से अन्दर की शुद्धता रखना ।
६. इन्द्रियनिग्रह – सभी इन्द्रियों को अधर्माचरण से रोककर धर्म – मार्ग में चलाना ।
७. धीः – मादक द्रव्यों के त्याग , सत्संग और योगाभ्यास से बुद्धि को बढाना ।
८. विद्या – पृथिवी से लेकर परमेश्वर – पर्यन्त सभी पदार्थों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना विद्या है।
९. सत्यम – जो पदार्थ जैसा है , उसे वैसा ही जानना ,मानना ,बोलना और लिखना सत्य कहलाता है।
१०. क्रोध न करना । सदा शांत और प्रसन्न रहना ।
इन दश लक्षणों वाले धर्म का पालन सभी को करना चाहिये ।
११. अहिंसा
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