मंगलवार, 20 मई 2014

सोलह श्रृंगार

सोलह श्रृंगार

By Veda Mandan Pakhand Khandan on Wednesday, May 7, 2014 at 1:42pm
-नित्यानंद शर्मा तप और त्यागभारतीय संस्कृति में तप और त्याग को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। भारत में वही पुजे जाते हैं जिन्होने सबकुछ त्याग दिया था। ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं। ऐसे ही एक महात्मा की कहानी है।एक बार की बात है। एक महात्मा बहुत ही कठोर तपस्या कर रहे थे । उनके तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान ने उन्हे दर्शन दिया और बोले - हम तुम्हारे तपस्या से प्रसन्न हैं, माँगो क्या वर माँगना चाहते हो। यह सुनकर महात्माजी ने हाथ जोड़कर भगवान से कहा - हे प्रभो, आप तो सबकुछ जानने वाले हैं। आपने जरुर यह देखा होगा कि मेरे अंदर कहीं किसी चिज की इच्छा रह गयी है जिसके कारण आपने वरदान माँगने को कहा। अगर आप देना हि कुछ चाहते हैं तो मेरे अंदर किसी चिज का इच्छा ना रहे यही वरदान दिजिये । इस तरह से महात्माजी ने सभी तरह की इच्छाओं ने मुक्ति पा ली। उन्होने सर्वस्व त्याग दिया और निरन्तर परमात्मा में लिन रहे ।वो महात्मा कोई और नहीं - भारद्वाज मुनि थे ।Posted by Nitya at 3:15 AM Labels: त्याग, भारद्वाज, महात्मा, संस्कृति 0 commentsEmail ThisBlogThis!Share to TwitterShare to FacebookShare to PinterestFriday, September 7, 2012मंत्रॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।अर्थात : उस पूर्ण परमब्रह्म का विस्तार अनन्त है। यद्यपि अनन्त संसार उससे व्युत्पित तथा विलोपित होते रहते हैं, तथापि वह पूर्ण ही है।सोलह श्रृंगारभारतीय परंपरा में नारी के सोलह श्रृंगार बताये गये हैं । वे सोलह श्रृंगार है-    सिंदुर     काजल    बिंदी    गजरा    लाली    अलता    पायल    चुड़ी    मंगलसूत्र    इत्र    बाजूबंद    नथनी    मेहंदी    बाली    बिछुआ    नख-रंगनीहाँलाकि भिन्न-भिन्न जगहों पर श्रृंगार स्थाननुसार होते हैं, फिर भी, साधारणतया हर जगह ये सारे श्रृंगार किये जाते रहे हैं।

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