शूद्र के विषय में मनु की धारणा---
मनु जन्मना वर्णव्यवस्था नहीं मानते । शिक्षा – दीक्षा के उपरान्त आचार्य योग्यता के आधार पर अन्तिम रूप से वर्णों का निश्चय करता है । जो व्यक्ति इन तीनों ( ब्रह्मण , क्षत्रिय , वेश्य ) वर्णों के गुणों को धारण नहीं कर पाता , इसी कारण अज्ञानता के प्रतीकरूप में शुद्र की उपमा दी है । वस्तुतः जो व्यक्ति
पढ – लिख नहीं पाता और ऊपर के किसी वर्ण के किसी वर्ण के योग्य नहीं होता वही शूद्र कहलाता है ।
उदा॰ २।१२१-१२३ ,२।१४-१५ ,२।१२६
शूद्र को धर्मपालन का अधिकार है । मनु॰ २।२१३
शूद्र को वेदाध्ययन का अधिकार है । यजु॰ २६।२
वेदों में शूद्र को यज्ञ आदि धार्मिक कार्य करने का अधिकार है । ऋग्वेद १०।५३।४-५
शूद्र श्रेष्ठ और पवित्र कर्मो को करके उत्कृष्ट वर्णों को प्राप्त कर सकता है ।
मनु जन्मना वर्णव्यवस्था नहीं मानते । शिक्षा – दीक्षा के उपरान्त आचार्य योग्यता के आधार पर अन्तिम रूप से वर्णों का निश्चय करता है । जो व्यक्ति इन तीनों ( ब्रह्मण , क्षत्रिय , वेश्य ) वर्णों के गुणों को धारण नहीं कर पाता , इसी कारण अज्ञानता के प्रतीकरूप में शुद्र की उपमा दी है । वस्तुतः जो व्यक्ति
पढ – लिख नहीं पाता और ऊपर के किसी वर्ण के किसी वर्ण के योग्य नहीं होता वही शूद्र कहलाता है ।
उदा॰ २।१२१-१२३ ,२।१४-१५ ,२।१२६
शूद्र को धर्मपालन का अधिकार है । मनु॰ २।२१३
शूद्र को वेदाध्ययन का अधिकार है । यजु॰ २६।२
वेदों में शूद्र को यज्ञ आदि धार्मिक कार्य करने का अधिकार है । ऋग्वेद १०।५३।४-५
शूद्र श्रेष्ठ और पवित्र कर्मो को करके उत्कृष्ट वर्णों को प्राप्त कर सकता है ।
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