गुरुवार, 22 मई 2014

गाय, बैल आदि सब अवध्य हैं

गाय, बैल आदि सब अवध्य हैं
ऋगवेद ८.१०१.१५ – मैं समझदार मनुष्य को कहे देता हूँ की तू बेचारी बेकसूर गाय की हत्या मत कर, वह अदिति हैं अर्थात काटने- चीरने योग्य नहीं हैं.
ऋगवेद ८.१०१.१६ – मनुष्य अल्पबुद्धि होकर गाय को मारे कांटे नहीं.
अथर्ववेद १०.१.२९ – तू हमारे गाय, घोरे और पुरुष को मत मार.
अथर्ववेद १२.४.३८ -जो (वृद्ध) गाय को घर में पकाता हैं उसके पुत्र मर जाते हैं.
अथर्ववेद ४.११.३- जो बैलो को नहीं खाता वह कस्त में नहीं पड़ता हैं
ऋगवेद ६.२८.४ – गोए वधालय में न जाये
अथर्ववेद ८.३.२४ – जो गोहत्या करके गाय के दूध से लोगो को वंचित करे , तलवार से उसका सर काट दो
यजुर्वेद १३.४३ – गाय का वध मत कर , जो अखंडनिय हैं
अथर्ववेद ७.५.५ – वे लोग मूढ़ हैं जो कुत्ते से या गाय के अंगों से यज्ञ करते हैं
यजुर्वेद ३०.१८- गोहत्यारे को प्राण दंड दो
वेदों से गो रक्षा के प्रमाण दर्शा कर स्वामी दयानन्द जी ने महीधर के यजुर्वेद भाष्य में दर्शाए गए अश्लील, मांसाहार के समर्थक, भोझिल कर्म कांड का खंडन कर उसका सही अर्थ दर्शा कर न केवल वेदों को अपमान से बचा लिया अपितु उनकी रक्षा कर मानव जाती पर भारी उपकार भी किया.
उदहारण के लिए
महीधर अपने भाष्य में यजुर्वेद २३/१९ का अर्थ इस प्रकार करते हैं- सब ऋत्विजों के सामने यजमान की स्त्री घोरे के पास सोवे, और सोती हुई घोरे से कहे की, हे अश्व ! जिससे गर्भ धारण होता हैं, ऐसा जो तेरा वीर्य हैं उसको मैं खैंच के अपनी योनी में डालूं , तथा तू उस वीर्य को मुझमें स्थापन करने वाला हैं.
ऐसे अश्लील एवं व्यर्थ अर्थ को नक्कारते हुए स्वामी दयानंद इस मंत्र का सही अर्थ इस प्रकार करते हैं जो परमात्मा गणनीय पदार्थो का पालन करने हारा हैं उसको हम लोग पूज्य बुद्धि से ग्रहण करते हैं जो की हमारे मित्र और मोक्ष सुख आदि का प्रियपति तथा हमको आनंद में रख कर सदा पालन करने वाला हैं, उसको हम लोग अपना उपास्य देव जन के ग्रहण करते हैं. जो की विद्या और सुख आदि का निधि अर्थात हमारे कोशो का पति हैं, उसी सर्वशक्तिमान परमेश्वर को हम अपना राजा और स्वामी मानते हैं. तथा जो की व्यापक होके सब जगत में और सब जगत उसमें बस रहा हैं, इस कारण से उसको वसु कहते हैं. हे वसु परमेश्वर! जो आप अपने सामर्थ्य से जगत के अनादिकरण में गर्भ धारण करते हैं, अर्थात सब मूर्तिमान द्रव्यों को आप ही रचते हैं.
महीधार अपने भाष्य में यजुर्वेद २३/२० का अर्थ इस प्रकार करते हैं- यजमान की स्त्री घोरे के लिंग को पकड़ कर आप ही अपनी योनी में डाल देवे.
ऐसे अश्लील एवं व्यर्थ अर्थ को नक्कारते हुए स्वामी दयानंद इस मंत्र का सही अर्थ इस प्रकार करते हैं राजा और प्रजा हम दोनों मिल के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि के प्रचार करने में सदा प्रवित रहे. जिससे हम दोनों परस्पर तथा सब प्राणियो को सब सुख से परिपूर्ण कर देवें. जिस राज्य में मनुष्य लोग अच्छी प्रकार ईश्वर को जानते हैं, वही देश सुख युक्त होता हैं. इससे राजा और प्रजा परस्पर सुख के लिए सद्गुणों के उपदेशक पुरुष की सदा सेवा करे, और विद्या तथा बल को सदा बदावे.
यजुर्वेद के २३ वें अध्याय का इसी प्रकार महीधर ने अत्यंत अश्लील अर्थ किया हैं जिसका सही अर्थ भाष्यकार-शंका-समाधान-आदि-विषय नामक पाठ में स्वामी दयानंद द्वारा रचित ऋगवेदादि भाष्य भूमिका में पड़ा जा सकता हैं.
पाठक स्वामी दयानंद द्वारा किये गए वेदों के क्रन्तिकारी भाष्य के महत्व को समझ गए होंगे.
- डॉ विवेक आर्य

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