गुरुवार, 22 मई 2014

गायत्रीमन्त्र

गायत्रीमन्त्र
ओ३म भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात
इसका संक्षिप्त अर्थ इस प्रकार है
ओ३मपरमात्मा सर्वरक्षक , सर्वव्यापक और सर्वाधार है
भूःवह परमात्मा प्राणों का प्राण होने से प्राणप्रिय है
भुवःवह परमात्मा दुःखविनाशक है
स्वःवह परमात्मा सुखस्वरूप और अपने भक्तों को सुख देनेवाला है
ततउस ,
सवितुःहम सर्वजगदुत्पादक , सर्वप्रेरक , सकल ऐश्वर्य सम्पन्न , प्राणियों को गर्भ के दुःख से छुङाने वाले
वरेण्यमवरण करने योग्य ,
भर्गःशुद्ध स्वरूप का , तेजःस्वरूप का ,
देवस्यआनन्दप्रद , कामना करने योग्य , चाहने योग्य , परमात्मा के ,
धीमहिध्यान करते हैं , उसे अपनी बुद्धि और हृदय में धारण करते हैं
धियःबुद्धि और कर्मों को ,
यःधारण किया हुआ वह सवितादेव
नःहमारी , ( बुद्धि और कर्मों को )
प्रचोदयातसन्मार्ग में प्रेरित करे

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