प्राणायाम के लाभ
अध्दिर्गात्राणि
शुमयन्ति मन: सत्येन शुमयति ।
विद्यातपोभ्यां
भूतात्मा बुद्धिर्ज्ञानेन शुध्याति
॥
यह मनुस्मृति ५।१०९ का श्लोक है ॥
जल से शरीर के बाहर के अवयव, सत्याचरण से मन, विद्या और तप
अर्थात् सब प्रकार के कष्ट भी सह के धर्म ही के अनुष्ठान करने से जीवात्मा,
ज्ञान, अर्थात् पृथिवी से लेके परमेश्वर पर्यन्त पदार्थो के विवेक
से बुद्धि, अर्थात दृढ निश्चय
पवित्रा होता है इस से स्नान
भोजन के पूर्व
अवश्य
करना चाहिये ॥
दूसरा प्राणायाम, इसमें प्रमाण -
प्राणायामादशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्तिराविवेकख्याते: ॥
यह योगशास्त्र २
।२८ का सूत्र
है ॥
जब मनुष्य प्राणायाम करता है तब प्रतिक्षण उत्तरोत्तर काल में अशुद्धि
नाश और ज्ञान का प्रकाश होता जाता है जब तक मुक्ति
न हो तब तक उसके
आत्मा का ज्ञान बराबर बढ़ता जाता है ॥
दह्यन्ते ममायमानानां धतूनां च यथा मला:
तथेन्द्रियाणां
दह्यन्ते दोषा: प्राणस्य निग्रहात
॥
यह मनुस्मृति ६
। ७१ का श्लोक
है
जैसे अग्नि में तपाने से सुवर्णादि धतुओं का मल नष्ट होकर शुद्ध होते
हैं वैसे प्राणायाम करके मन आदि इन्द्रियों के दोष क्षीण होकर निर्मल हो जाते
हैं प्राणायाम
की विधि --
प्रच्छर्दनविधरणाभ्यां वा प्राणस्य ॥ योगसूत्रा १। ३४
जैसे अत्यन्त वेग से वमन होकर अन्न जल बाहर निकल जाता है वैसे
प्राण को बल से बाहर फेंक के बाहर ही यथाशक्ति रोक देवे । जब बाहर निकालना
चाहे तब मूलेन्द्रिय को ऊपर खींच के वायु को बाहर फेक दे । जब तक मूलेन्द्रिय
को ऊपर खींच रक्खे, तब तक प्राण बाहर रहता है । इसी प्रकार
प्राण
बाहर
अधिक ठहर सकता है जब गभराहट
हो तब धीरे-धीरे
भीतर वायु को ले के फिर
भी वैसे ही करता जाय, जितना सामर्थ्य और इच्छा हो और मन में ;ओ३म इस
का जप करता जाय इस प्रकार करने से आत्मा और मन की पवित्राता और स्थिरता
होती है ।
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