शंका समाधान
शंका: क्षमा याचना करने
से क्या
ईश्वर अपने
भक्तों के
पापों को क्षमा
करता है?
समाधान: कदाचित् नहीं! यदि परमात्मा किसी भी व्यक्ति के पापों को क्षमा करता है तो वह न्यायकारी नहीं हो सकता क्योंकि वह पापियों को अधिक पाप कर्म करने की अनुमति, बढ़ावा तथा स्वतन्त्रता प्रदान कर रहा है जो परमात्मा के लिये असम्भव बात है। ईश्वर न्यायकारी है, दयालू है, इसी लिये पापियों को सुधारने के लिये दण्ड देता है। संसार में हम देखते हैं कि छोटा सा बच्चा भी यदि वह पहली बार कोई ग़लती करता है तो उसके माता-पिता समझाते हैं और वह बच्चा जान-बूझ कर िफर उसी ग़लती को बार-बार करता है तो माँ-बाप उसे सज़ा देते हैं ताकि उसका बच्चा भविष्य में वही ग़लती न करे और सुधर जाए। परमात्मा भी हमें हर क़दम पर हर बुरे काम करने से पहले चेतावनी देता रहता है। जानते हैं कैसे? हर बुरे कार्य करने से पूर्व या हर ग़लती करने से पहले हमारे मन में ‘भय’, ‘शंका’ और ‘लज्जा’ की अनुभूति होती है, वह परमात्मा की ओर से चेतावनी होती है, जो हम सुनी-अनसुनी कर देते हैं। उसकी बात न मानकर हम िफर ग़लत कार्य करते हैं और उसका फल मिलने पर पछतावा करते हैं और ईश्वर से माफ़ी माँगते रहते हैं। आप ही बताइये कि क्या वह न्यायकारी परमात्मा हमें माफ़ करेगा, हमें बक्षेगा? यह सम्भव नहीं! यदि ऐसा होने लगे तो पापी जन और अधिक पाप करने लगेंगे और अपने किये कुकर्मों की क्षमा याचना करेंगे। िफर ईश्वर की न्याय व्यवस्था का क्या होगा?
मनुष्य हर समय जाने-अनजाने में ग़लतियाँ या दुष्कर्म करता रहता है और कभी-कभी तो सोच-समझकर जानते हुए भी कि इस ग़लत कार्य का परिणाम ठीक नहीं होगा िफर भी वह कुकर्म कर बैठता है और कर्म करते ही वह ईश्वर से क्षमा याचना माँगता है कि ‘हे प्रभो मुझे माफ़ कर दो’। परमात्मा की चेतावनी के बावजूद भी वह दुष्कर्म करता है तो क्या ईश्वर उसे क्ष्मा करेगा? अतः हर पाप कर्म अथवा ग़लती के परिणाम में दण्ड के रूप में ‘दुःख’ (बन्धन) प्राप्त होता है और हर पुण्य तथा अच्छे कर्म का फल ‘सुख’ (स्व्तन्त्रता) के रूप में मिलता है। दुःख का दूसरा नाम बन्धन है और सुख का दूसरा नाम स्वतन्त्रता है। इसलिये सब मनुष्यों को सब काम सोच-समझकर कर धर्मानुसार करने चाहियें।
समाधान: कदाचित् नहीं! यदि परमात्मा किसी भी व्यक्ति के पापों को क्षमा करता है तो वह न्यायकारी नहीं हो सकता क्योंकि वह पापियों को अधिक पाप कर्म करने की अनुमति, बढ़ावा तथा स्वतन्त्रता प्रदान कर रहा है जो परमात्मा के लिये असम्भव बात है। ईश्वर न्यायकारी है, दयालू है, इसी लिये पापियों को सुधारने के लिये दण्ड देता है। संसार में हम देखते हैं कि छोटा सा बच्चा भी यदि वह पहली बार कोई ग़लती करता है तो उसके माता-पिता समझाते हैं और वह बच्चा जान-बूझ कर िफर उसी ग़लती को बार-बार करता है तो माँ-बाप उसे सज़ा देते हैं ताकि उसका बच्चा भविष्य में वही ग़लती न करे और सुधर जाए। परमात्मा भी हमें हर क़दम पर हर बुरे काम करने से पहले चेतावनी देता रहता है। जानते हैं कैसे? हर बुरे कार्य करने से पूर्व या हर ग़लती करने से पहले हमारे मन में ‘भय’, ‘शंका’ और ‘लज्जा’ की अनुभूति होती है, वह परमात्मा की ओर से चेतावनी होती है, जो हम सुनी-अनसुनी कर देते हैं। उसकी बात न मानकर हम िफर ग़लत कार्य करते हैं और उसका फल मिलने पर पछतावा करते हैं और ईश्वर से माफ़ी माँगते रहते हैं। आप ही बताइये कि क्या वह न्यायकारी परमात्मा हमें माफ़ करेगा, हमें बक्षेगा? यह सम्भव नहीं! यदि ऐसा होने लगे तो पापी जन और अधिक पाप करने लगेंगे और अपने किये कुकर्मों की क्षमा याचना करेंगे। िफर ईश्वर की न्याय व्यवस्था का क्या होगा?
मनुष्य हर समय जाने-अनजाने में ग़लतियाँ या दुष्कर्म करता रहता है और कभी-कभी तो सोच-समझकर जानते हुए भी कि इस ग़लत कार्य का परिणाम ठीक नहीं होगा िफर भी वह कुकर्म कर बैठता है और कर्म करते ही वह ईश्वर से क्षमा याचना माँगता है कि ‘हे प्रभो मुझे माफ़ कर दो’। परमात्मा की चेतावनी के बावजूद भी वह दुष्कर्म करता है तो क्या ईश्वर उसे क्ष्मा करेगा? अतः हर पाप कर्म अथवा ग़लती के परिणाम में दण्ड के रूप में ‘दुःख’ (बन्धन) प्राप्त होता है और हर पुण्य तथा अच्छे कर्म का फल ‘सुख’ (स्व्तन्त्रता) के रूप में मिलता है। दुःख का दूसरा नाम बन्धन है और सुख का दूसरा नाम स्वतन्त्रता है। इसलिये सब मनुष्यों को सब काम सोच-समझकर कर धर्मानुसार करने चाहियें।
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