"ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका"
अथ वेदसंज्ञाविचार: ( महर्षि दयानन्द सरस्वती )
अथ कोण्यं वेदो नाम ? मन्त्राभागसंहितेत्याह । किन्च ‘मन्त्राब्राह्मणयोर्वेदनामध्ेयम्’
इति कात्यायनोक्तेबर््रांणभागस्यापि वेदसंज्ञा कुतो न स्वीक्रियते इति ?
मैवं वाच्यम् । न ब्रांह्म्णानां वेदसंज्ञा भवितुमर्हति । कुत: ? पुराणेतिहाससंज्ञकत्वाद्वेद-
व्याख्यानादृषिभिरुक्तत्वादनीश्वरोक्तत्वात्कात्यायनभिन्नैऋ षिभिर्वेदसंज्ञायामस्वीकृतत्वान्मनुष्यबुद्धि-
रचितत्वाच्चेति ।।
भाषार्थ---प्रश्न---वेद किन का नाम है ? उत्तर---मन्त्रासंहिताओं का । प्रश्न---जो कात्यायन ऋषि
ने कहा है कि ‘मन्त्रा और ब्राह्मणग्रन्थों का नाम वेद है,’ फिर ब्राह्मण भाग को भी वेदों में ग्रहण आप
लोग क्यों नहीं करते हैं ?
उत्तर---ब्राह्मणग्रन्थ वेद नहीं हो सकते, क्योंकि उन्हीं का नाम इतिहास, पुराण, कल्प, गाथा
और नाराशंसी भी है । वे र्इश्वरोक्त नहीं हैं, किन्तु महर्षिलोगों के किये वेदों के व्याख्यान हैं ।
एक कात्यायन को छोड़ के किसी अन्य ऋषि ने उन के वेद होने में साक्षी नहीं दी है । और वे
देह- धरी पुरुषों के बनाये हैं । इन हेतुओं से ब्राह्मणग्रन्थों की वेद संज्ञा नहीं हो सकती । और
मन्त्रासंहिताओं का वेद नाम इसलिए है कि र्इश्वररचित और सब विद्याओं का मूल है ।
प्रश्न---जैसे ऐतरेय आदि ब्राह्मणग्रन्थों में याज्ञवल्क्य, मैत्रोयी, गार्गी और जनक आदि
के इतिहास लिखे हैं, वैसे ही ( त्रयायुषं जमदग्ने: ) इत्यादि वेदों में भी पाये जाते हैं । इससे मन्त्र
और ब्राह्मणभाग ये दोनों बराबर होते हैं । फिर ब्राह्मणग्रन्थों को वेदों में क्यों नहीं मानते हो ?
उत्तर---ऐसा भ्रम मत करो क्योंकि जमदग्नि और कश्यप ये नाम देहधरी मनुष्यों के नहीं हैं ।
इसका प्रमाण शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि---’चक्षु का नाम जमदग्नि और प्राण का नाम कश्यप
है ।’ इस कारण से यहां प्राण से अन्त:करण और आंख से सब इन्द्रियों का ग्रहण करना चाहिए
अर्थात् जिन से जगत् के सब जीव बाहर और भीतर देखते हैं ।
( त्रयायुषं ज. ) सो इस मन्त्रा से र्इश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए कि---हे जगदीश्वर ! आप के
अनुग्रह से हमारे प्राण आदि अन्त:करण और आंख आदि सब इन्द्रियों की (३००) तीन सौ वर्ष तक
उमर बनी रहे । ( यद्दे वेषु. ) सो जैसी विद्वानों के बीच में विद्यादि शुभगुण और आनन्दयुक्त उमर
होती है, ( तन्नो अस्तु. ) वैसी ही हम लोगों की भी हो । तथा (त्रयायुषं जमदग्ने. ) इत्यादि उपदेश
से यह भी जाना जाता है कि मनुष्य ब्रंचर्यादि उनम नियमों से त्रिगुण चतुर्गुण आयु कर सकता
है, अर्थात् ( ४०० ) चार सौ वर्ष तक भी सुखपूर्वक जी सकता है ।
इस से यह सिण् हुआ है कि वेदों में सत्य अर्थ के वाचक शब्दों से सत्यविद्याओं का प्रकाश
किया है लौकिक इतिहासों का नहीं । इस से जो सायणाचार्यादि लोगों ने अपनी बनार्इ टीकाओं में
वेदों में जहां तहां इतिहास वर्णन किये हैं, वे सब मिथ्या हैं ।
अथ वेदसंज्ञाविचार: ( महर्षि दयानन्द सरस्वती )
अथ कोण्यं वेदो नाम ? मन्त्राभागसंहितेत्याह । किन्च ‘मन्त्राब्राह्मणयोर्वेदनामध्ेयम्’
इति कात्यायनोक्तेबर््रांणभागस्यापि वेदसंज्ञा कुतो न स्वीक्रियते इति ?
मैवं वाच्यम् । न ब्रांह्म्णानां वेदसंज्ञा भवितुमर्हति । कुत: ? पुराणेतिहाससंज्ञकत्वाद्वेद-
व्याख्यानादृषिभिरुक्तत्वादनीश्वरोक्तत्वात्कात्यायनभिन्नैऋ षिभिर्वेदसंज्ञायामस्वीकृतत्वान्मनुष्यबुद्धि-
रचितत्वाच्चेति ।।
भाषार्थ---प्रश्न---वेद किन का नाम है ? उत्तर---मन्त्रासंहिताओं का । प्रश्न---जो कात्यायन ऋषि
ने कहा है कि ‘मन्त्रा और ब्राह्मणग्रन्थों का नाम वेद है,’ फिर ब्राह्मण भाग को भी वेदों में ग्रहण आप
लोग क्यों नहीं करते हैं ?
उत्तर---ब्राह्मणग्रन्थ वेद नहीं हो सकते, क्योंकि उन्हीं का नाम इतिहास, पुराण, कल्प, गाथा
और नाराशंसी भी है । वे र्इश्वरोक्त नहीं हैं, किन्तु महर्षिलोगों के किये वेदों के व्याख्यान हैं ।
एक कात्यायन को छोड़ के किसी अन्य ऋषि ने उन के वेद होने में साक्षी नहीं दी है । और वे
देह- धरी पुरुषों के बनाये हैं । इन हेतुओं से ब्राह्मणग्रन्थों की वेद संज्ञा नहीं हो सकती । और
मन्त्रासंहिताओं का वेद नाम इसलिए है कि र्इश्वररचित और सब विद्याओं का मूल है ।
प्रश्न---जैसे ऐतरेय आदि ब्राह्मणग्रन्थों में याज्ञवल्क्य, मैत्रोयी, गार्गी और जनक आदि
के इतिहास लिखे हैं, वैसे ही ( त्रयायुषं जमदग्ने: ) इत्यादि वेदों में भी पाये जाते हैं । इससे मन्त्र
और ब्राह्मणभाग ये दोनों बराबर होते हैं । फिर ब्राह्मणग्रन्थों को वेदों में क्यों नहीं मानते हो ?
उत्तर---ऐसा भ्रम मत करो क्योंकि जमदग्नि और कश्यप ये नाम देहधरी मनुष्यों के नहीं हैं ।
इसका प्रमाण शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि---’चक्षु का नाम जमदग्नि और प्राण का नाम कश्यप
है ।’ इस कारण से यहां प्राण से अन्त:करण और आंख से सब इन्द्रियों का ग्रहण करना चाहिए
अर्थात् जिन से जगत् के सब जीव बाहर और भीतर देखते हैं ।
( त्रयायुषं ज. ) सो इस मन्त्रा से र्इश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए कि---हे जगदीश्वर ! आप के
अनुग्रह से हमारे प्राण आदि अन्त:करण और आंख आदि सब इन्द्रियों की (३००) तीन सौ वर्ष तक
उमर बनी रहे । ( यद्दे वेषु. ) सो जैसी विद्वानों के बीच में विद्यादि शुभगुण और आनन्दयुक्त उमर
होती है, ( तन्नो अस्तु. ) वैसी ही हम लोगों की भी हो । तथा (त्रयायुषं जमदग्ने. ) इत्यादि उपदेश
से यह भी जाना जाता है कि मनुष्य ब्रंचर्यादि उनम नियमों से त्रिगुण चतुर्गुण आयु कर सकता
है, अर्थात् ( ४०० ) चार सौ वर्ष तक भी सुखपूर्वक जी सकता है ।
इस से यह सिण् हुआ है कि वेदों में सत्य अर्थ के वाचक शब्दों से सत्यविद्याओं का प्रकाश
किया है लौकिक इतिहासों का नहीं । इस से जो सायणाचार्यादि लोगों ने अपनी बनार्इ टीकाओं में
वेदों में जहां तहां इतिहास वर्णन किये हैं, वे सब मिथ्या हैं ।
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