“सत्यार्थ प्रकाश”
ईश्वर सर्व व्यापक है------
प्रश्न----र्इश्वर व्यापक है वा किसी देशविशेष में रहता है?
उत्तर----व्यापक है क्योंकि जो एक देश में रहता तो सर्वान्तर्यामी सर्वज्ञ
सर्वनियन्ता, सब का स्रष्टा, सब का पालनकर्ता और प्रलयकर्ता नहीं हो सकता अप्राप्त
देश में कर्ता की क्रिया का होना असम्भव है
प्रश्न----परमेश्वर दयालु और न्यायकारी है वा नहीं?
उत्तर----है ।
प्रश्न----ये दोनों गुण परस्पर विरुद्ध है । जो न्याय करे तो दया और दया
करे तो न्याय छूट जाय क्योंकि न्याय उस को कहते हैं कि जो कर्ता के कर्मो के अनुसार
न अध्कि, न न्यून सुख दु:ख पहुंचाना और दया उस को कहते हैं जो अपराधी
को विना दण्ड दिये छोड़ देना ।
उत्तर----न्याय और दया का नाममात्रा ही भेद है क्योंकि जो न्याय से प्रयोजन
सिद्ध होता है वही दया से दण्ड देने का प्रयोजन है कि मनुष्य अपराध् करने से
बन्ध् होकर दु:खों को प्राप्त न हों । वही दया कहाती है जो पराये दु:खों का छुड़ाना
और जैसा अर्थ दया और न्याय का तुम ने किया है वह ठीक नहीं क्योंकि जिस
ने जैसा जितना बुरा कर्म किया हो उस को उतना वैसा ही दण्ड देना चाहिये उसी
का नाम न्याय है और जो अपराधी को दण्ड न दिया जाय तो दया का नाश हो
ईश्वर सर्व व्यापक है------
प्रश्न----र्इश्वर व्यापक है वा किसी देशविशेष में रहता है?
उत्तर----व्यापक है क्योंकि जो एक देश में रहता तो सर्वान्तर्यामी सर्वज्ञ
सर्वनियन्ता, सब का स्रष्टा, सब का पालनकर्ता और प्रलयकर्ता नहीं हो सकता अप्राप्त
देश में कर्ता की क्रिया का होना असम्भव है
प्रश्न----परमेश्वर दयालु और न्यायकारी है वा नहीं?
उत्तर----है ।
प्रश्न----ये दोनों गुण परस्पर विरुद्ध है । जो न्याय करे तो दया और दया
करे तो न्याय छूट जाय क्योंकि न्याय उस को कहते हैं कि जो कर्ता के कर्मो के अनुसार
न अध्कि, न न्यून सुख दु:ख पहुंचाना और दया उस को कहते हैं जो अपराधी
को विना दण्ड दिये छोड़ देना ।
उत्तर----न्याय और दया का नाममात्रा ही भेद है क्योंकि जो न्याय से प्रयोजन
सिद्ध होता है वही दया से दण्ड देने का प्रयोजन है कि मनुष्य अपराध् करने से
बन्ध् होकर दु:खों को प्राप्त न हों । वही दया कहाती है जो पराये दु:खों का छुड़ाना
और जैसा अर्थ दया और न्याय का तुम ने किया है वह ठीक नहीं क्योंकि जिस
ने जैसा जितना बुरा कर्म किया हो उस को उतना वैसा ही दण्ड देना चाहिये उसी
का नाम न्याय है और जो अपराधी को दण्ड न दिया जाय तो दया का नाश हो
जाय क्योंकि एक अपराधी डाकू को छोड़ देने से सहस्रो धर्मात्मा पुरुषों को दु:ख
देना है जब एक के छोड़ने से सहस्रो मनुष्यों को दु:ख प्राप्त होता है वह दया
किस प्रकार हो सकती है? दया वही है कि उस डाकू को कारागार में रखकर
पाप करने से बचाना डाकू पर और उस डाकू को मार देने से अन्य सहस्रों मनुष्यों
पर दया प्रकाशित होती है ।
प्रश्न---फिर दया और न्याय दो शब्द क्यों हुए? क्योंकि उन दोनों का
अर्थ एक ही होता है तो दो शब्दों का होना व्यर्थ है इसलिये एक शब्द का रहना
तो अच्छा था इस से क्या विदित होता है कि दया और न्याय का एक प्रयोजन
नहीं है ?
उत्तर----क्या एक अर्थ के अनेक नाम और एक नाम के अनेक अर्थ
नहीं होते?
प्रश्न----होते है ।
उत्तर----तो पुन: तुम को शंका क्यों हुर्इ?
प्रश्न----संसार में सुनते हैं इसलिये
उत्तर----संसार में तो सच्चा झूठा दोनों सुनने में आता है परन्तु उस का
विचार से निश्चय करना अपना काम है
देखो! र्इश्वर की पूर्ण दया तो यह है कि जिस ने सब जीवों के प्रयोजन
सिद्ध होने के अर्थ जगत् में सकल पदार्थ उत्पन्न करके दान दे रक्खे है । इस से
भिन्न दूसरी बड़ी दया कौन सी है? अब न्याय का फल प्रत्यक्ष दीखता है कि सुख
दु:ख की व्यवस्था अध्कि और न्यूनता से फल को प्रकाशित कर रही है इन दोनों
का इतना ही भेद है कि जो मन में सब को सुख होने और दु:ख छूटने की इच्छा
और क्रिया करना है वह दया और बाह्य चेष्टा अर्थात् बन्धन- छेदनादि यथावत् दण्ड
देना न्याय कहाता है दोनों का एक प्रयोजन यह है कि सब को पाप और दु:खों
से पृथक करना ।
देना है जब एक के छोड़ने से सहस्रो मनुष्यों को दु:ख प्राप्त होता है वह दया
किस प्रकार हो सकती है? दया वही है कि उस डाकू को कारागार में रखकर
पाप करने से बचाना डाकू पर और उस डाकू को मार देने से अन्य सहस्रों मनुष्यों
पर दया प्रकाशित होती है ।
प्रश्न---फिर दया और न्याय दो शब्द क्यों हुए? क्योंकि उन दोनों का
अर्थ एक ही होता है तो दो शब्दों का होना व्यर्थ है इसलिये एक शब्द का रहना
तो अच्छा था इस से क्या विदित होता है कि दया और न्याय का एक प्रयोजन
नहीं है ?
उत्तर----क्या एक अर्थ के अनेक नाम और एक नाम के अनेक अर्थ
नहीं होते?
प्रश्न----होते है ।
उत्तर----तो पुन: तुम को शंका क्यों हुर्इ?
प्रश्न----संसार में सुनते हैं इसलिये
उत्तर----संसार में तो सच्चा झूठा दोनों सुनने में आता है परन्तु उस का
विचार से निश्चय करना अपना काम है
देखो! र्इश्वर की पूर्ण दया तो यह है कि जिस ने सब जीवों के प्रयोजन
सिद्ध होने के अर्थ जगत् में सकल पदार्थ उत्पन्न करके दान दे रक्खे है । इस से
भिन्न दूसरी बड़ी दया कौन सी है? अब न्याय का फल प्रत्यक्ष दीखता है कि सुख
दु:ख की व्यवस्था अध्कि और न्यूनता से फल को प्रकाशित कर रही है इन दोनों
का इतना ही भेद है कि जो मन में सब को सुख होने और दु:ख छूटने की इच्छा
और क्रिया करना है वह दया और बाह्य चेष्टा अर्थात् बन्धन- छेदनादि यथावत् दण्ड
देना न्याय कहाता है दोनों का एक प्रयोजन यह है कि सब को पाप और दु:खों
से पृथक करना ।
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