वैदिकधर्म तथा र्इसार्इ मत
फादर कानरीड साहब आगरा से धर्मचर्चा---१२ दिसम्बर, नववनद्ध १८८०
नोट---यह धर्मचर्चा पफादर कानरीड साहब ओ.सी.वार्इ. रेवरेण्ड नायब
विशप सैंट पीटरसन रोमन कैथलिक चर्च आगरा और श्रीमान् स्वामी दयानन्द
सरस्वती जी महाराज के मध्य १२ दिसम्बर, सन् १८८०, रविवार तदनुसार
मगसिर शुक्ला ११, संवत् १९३७ विक्रमी को हुर्इ ।
स्वामी जी कर्इ वकीलों और सम्मानित व्यक्तियों तथा मार्टिन साहब
म्यूनिसिपल कमिश्नर सहित बिशप साहब से मिलने को गये ।
स्वामी जी---नास्तिक लोग उत्पन्न करने वाले को नहीं मानते । यदि
हम और आप और दूसरे मत के बुद्धिमान् लोग मिलकर और सब मतों में
जो सत्य बातें हैं उन का विचार करके जिन पर सब लोग एकमत हो जावें,
और आपस का मतभेद जाता रहे तो विरोध् में केवल नास्तिक लोग ही रह
जावेंगे । फिर उन को हम अच्छी प्रकार बौद्धिक युक्तियों के द्वारा परास्त
कर देंगे । गोरक्षा जिस से लाभ ही लाभ है, ऐसी श्रेष्ठ बातों में हम को
और आप को और सब को मिलकर काम करना चाहिये ।
बिशप साहब---यह काम अत्यन्त कठिन है इसलिए कि मुसलमान हलाल
करना कभी न छोड़ेंगे । वैसे ही र्इसार्इ लोग मांस खाना कभी न छोड़ेंगे। इस
में सन्देह नहीं कि र्इश्वर अवश्य है और चूंकि र्इश्वर की सूरत नहीं देखी
और वह बोलता नहीं है, इस कारण से यह अवश्य है कि उस ने अपना
एक स्थानापन्न धर्म का बतलाने वाला संसार में भेजा । जिस प्रकार महारानी
विक्टोरिया विना दूसरे के भारतवर्ष का शासन नहीं कर सकती, उसी प्रकार
खुदा विना खुदावन्द यीशु मसीह की सहायता के संसार के मनुष्यों का तथा
मुक्ति का प्रबन्ध् नहीं कर सकता ।
स्वामी जी ने कहा कि---प्रथम तो जो उदाहरण है वह ठीक नहीं क्योंकि
जीव की परमेश्वर से कोर्इ समानता नहीं । पहले र्इश्वर का लक्षण होना चाहिये
कि र्इश्वर क्या वस्तु है । स्वामी जी ने उस के विशेषण, सर्वज्ञ, अविनाशी,
सर्वशक्तिमान् आदि बताये और कहा कि ऐसे गुणों वाला र्इश्वर किसी के
आधीन नहीं कि स्वयं प्रबन्ध् न कर सके और दूसरे से सहायता लेनी पड़े।
तीसरे यदि हम मान भी लें कि र्इसा कोर्इ अच्छे पुरुष थे तो भी एक मनुष्य
थे । और र्इश्वर न्यायाधीश है वह एक मनुष्य के कहने से अन्याय नहीं कर
सकता । जैसा जिस का कर्म होगा वैसा ही फल देगा । इसलिए यह असम्भव
है कि न्यायविरुण् परमेश्वर किसी की सिपफारिश मानकर पुण्य-पाप के अनुसार
फल न देवे । अत: र्इश्वर को स्थानापन्न भेजने की आवश्यकता नहीं ।
स्थानापन्न देना यह कार्य मनुष्यों का है । वह ऐसा स्वामी है कि समस्त कार्य
और प्रत्येक प्रबन्ध् विना स्थानापन्न के कर सकता है ।
बिशप साहब---क्योंकर प्रबन्ध् कर सकता है ?
स्वामी जी---शिक्षा अर्थात् ज्ञान के द्वारा ।
बिशप साहब---वह पुस्तक ज्ञान की कौन सी है ?
स्वामी जी---चारों वेद र्इश्वर की ओर से प्रमाण हैं । (१८ पुराणों का
नाम नहीं लिया ।)
बिशप साहब---क्या अठारह पुराण भी धर्मपुस्तक हैं ?
स्वामी जी---नहीं ।
बिशप साहब---चारों वेद कैसे आये, र्इश्वर ने किस को दिये, किस
ने संसार में पहले समझाये ?
स्वामी जी---अग्नि, वायु, आदित्य, अन्गिरा, चारों ऋषियों के आत्मा
में र्इश्वर ने वेदों का ज्ञान दिया, उन्होंने समझाया ।
बिशप साहब---वेद र्इश्वर की ओर से नहीं प्रत्युत वेद का बनाने वाला
एक ब्राह्मण है, जिस का नाम इस समय स्मरण नहीं रहा ।
स्वामी जी---ऐसा नहीं, वेद सृष्टि की आदि में परमात्मा ने प्रकाशित
किये । किसी ब्राह्मण ने इन को नहीं बनाया, प्रत्युत वेद पढ़ने से मनुष्य
ब्राह्मण बन सकता है और जो वेद न पढ़े वह कदापि ब्राह्मण नहीं कहला
सकता।
बिशप साहब---वे चारों मर गये या जीवित हैं ?
स्वामी जी---मर गये हैं ।
बिशप साहब---उनके पश्चात् उन का स्थानापन्न कौन हुआ और एक
के पश्चात् कौन स्थानापन्न होता रहा और अब कौन है ?
स्वामी जी---हजारों लाखों ऋषि मुनि उनके स्थानापन्न होते रहे ।
जैसे छ: शास्त्रों के कर्ता छ: ऋषि, उपनिषदों तथा ब्राह्मणों के लेखक ऋषि
मुनि लोग । उनके अतिरिक्त प्रत्येक काल में जो ऋषियों के निश्चित नियमों
के अनुसार चले, शुद्धाचारी हो वही स्थानापन्न हो सकता है परन्तु आप
बतलाइये र्इसा के पश्चात् आप के यहां अब तक कौन हुआ ?
बिशप साहब---हमारे यहां र्इसा के पश्चात् रोम का पोप अर्थात् उच्चतम
पादरी र्इश्वर का स्थानापन्न समझा जाता है । जो भूल हम लोगों से हो जाये
उस का सुधर उच्चतम पादरी अर्थात् रोम के पोप द्वारा होता है ।
स्वामी जी---और जो भूल रोम के पोप से हो उस का सुधर किस
प्रकार हो सकता है ? आप को पोप के अत्याचार और धर्मिक झगड़े जो
लूथर के काल से पहले और उस समय होते थे और कुछ अब तक जारी
हैं, भली प्रकार विदित होंगे और इसी प्रकार र्इसाइयों की पहली सभाओं का
वृतान्त और धर्मिक झगड़े और सार्वजनिक हत्याएं आप से छुपी न होंगी।
उन का सुधर किस प्रकार वह पोप जो स्वयम् उन का आरम्भकर्ता है और
जो स्वयम् उन रोगों में पंफसा हुआ है, कर सकता है ? यह बात ठीक वैसी
ही है जिस प्रकार हमारे पोप पौराणिक लोगों की ।
बिशप साहब इस का कोर्इ बुद्धिपूर्वक और युक्तियुक्त उत्तर जिस से
स्वामी जी और श्रोताओं का सन्तोष हो, न दे सके । तत्पश्चात् लगभग १२
बजे के समय स्वामी जी एक बड़ा गिर्जा देखने के लिए चले गये ।
(लेखराम पृष्ठ ६९१—६९३ )
विविध् विषय
(पं. लेखराम जी द्वारा किये हुए प्रश्नों का उत्तर---१७ मर्इ, १८८१ )
आर्यपथिक पं लेखराम जी अपने बनाये हुए महर्षि के जीवनचरित्रा
में लिखते हैं---
११ मर्इ, सन् १८८१ को संवाददाता पेशावर से स्वामी जी के दर्शनों
के निमित्त चलकर १५ की रात को अजमेर पहुंचा । और वहां पहुंचकर स्टेशन
के समीप वाली सराय में डेरा किया । और १७ मर्इ को प्रात:काल सेठ जी
के बागीचे में जाकर स्वामी जी का दर्शन प्राप्त किया । उन के दर्शन से
मार्ग के समस्त कष्टों को भूल गया और उन के सत्योपदेशों से समस्त समस्याएं
सुलझ गई । जयपुर के एक बंगाली सज्जन ने मुझ से प्रश्न किया था कि
आकाश भी व्यापक है और ब्रह्म अर्थात ईश्वर भी, दो व्यापक किस प्रकार इकट्ठे रह
सकते हैं ?
मुझ से इस का कुछ उत्तर न बन पाया । मैंने यही प्रश्न स्वामी जी
से पूछा । उन्होंने एक पत्थर उठाकर कहा कि इसमें अग्नि व्यापक है या
नहीं ?
मैंने कहा कि---व्यापक है ।
फिर पूछा कि---मिट्टी ? मैंने कहा कि---व्यापक है ।
फिर पूछा कि---जल ? मैंने कहा कि---व्यापक है ।
फिर पूछा कि---आकाश और वायु ? मैंने कहा कि---व्यापक हैं ।
फिर पूछा कि परमात्मा ? मैंने कहा कि---वह भी व्यापक है ।
कहा कि देखा कितनी चीजें हैं परन्तु सब इस में व्यापक हैं । वास्तव
में बात यह है कि जो जिस से सूक्ष्म होती है वह उस में व्यापक हो सकती
है । ब्रह्म चूंकि सब से अति सूक्ष्म है इसलिए सर्वव्यापक है, जिस से मेरी
शान्ति हो गर्इ ।
मुझ से उन्होंने कहा कि और जो तुम्हारे मन में सन्देह हों सब निवारण
कर लो मैंने बहुत सोच विचार कर दश प्रश्न लिखे जिन में से आठ मुझे
स्मरण हैं, शेष भूल गये ।
प्रश्न---जीव और ब्रह्म की भिन्नता में कोर्इ वेद का प्रमाण बतलाइये ?
उत्तर---यजुर्वेद का ४०वां अध्याय सारा जीव-ब्रह्म का भेद
बतलाता है।
प्रश्न---अन्य मत के मनुष्यों को शुद्ध करना चाहिये या नहीं ?
उत्तर---अवश्य करना चाहिये ।
प्रश्न---विद्युत् क्या वस्तु है और किस प्रकार उत्पन्न होती है ?
उत्तर---विद्युत् सर्वत्रा है और रगड़ से उत्पन्न होती है । बादलों की विद्युत्
भी बादलों और वायु की रगड़ से उत्पन्न होती है ।
मुझ से कहा कि २५ वर्ष से पूर्व विवाह न करना। कर्इ र्इसार्इ और
जैनी प्रश्न करने आते परन्तु शीघ्र निरुत्तर हो जाते थे । (लेखराम पृष्ठ ५३२ )
फादर कानरीड साहब आगरा से धर्मचर्चा---१२ दिसम्बर, नववनद्ध १८८०
नोट---यह धर्मचर्चा पफादर कानरीड साहब ओ.सी.वार्इ. रेवरेण्ड नायब
विशप सैंट पीटरसन रोमन कैथलिक चर्च आगरा और श्रीमान् स्वामी दयानन्द
सरस्वती जी महाराज के मध्य १२ दिसम्बर, सन् १८८०, रविवार तदनुसार
मगसिर शुक्ला ११, संवत् १९३७ विक्रमी को हुर्इ ।
स्वामी जी कर्इ वकीलों और सम्मानित व्यक्तियों तथा मार्टिन साहब
म्यूनिसिपल कमिश्नर सहित बिशप साहब से मिलने को गये ।
स्वामी जी---नास्तिक लोग उत्पन्न करने वाले को नहीं मानते । यदि
हम और आप और दूसरे मत के बुद्धिमान् लोग मिलकर और सब मतों में
जो सत्य बातें हैं उन का विचार करके जिन पर सब लोग एकमत हो जावें,
और आपस का मतभेद जाता रहे तो विरोध् में केवल नास्तिक लोग ही रह
जावेंगे । फिर उन को हम अच्छी प्रकार बौद्धिक युक्तियों के द्वारा परास्त
कर देंगे । गोरक्षा जिस से लाभ ही लाभ है, ऐसी श्रेष्ठ बातों में हम को
और आप को और सब को मिलकर काम करना चाहिये ।
बिशप साहब---यह काम अत्यन्त कठिन है इसलिए कि मुसलमान हलाल
करना कभी न छोड़ेंगे । वैसे ही र्इसार्इ लोग मांस खाना कभी न छोड़ेंगे। इस
में सन्देह नहीं कि र्इश्वर अवश्य है और चूंकि र्इश्वर की सूरत नहीं देखी
और वह बोलता नहीं है, इस कारण से यह अवश्य है कि उस ने अपना
एक स्थानापन्न धर्म का बतलाने वाला संसार में भेजा । जिस प्रकार महारानी
विक्टोरिया विना दूसरे के भारतवर्ष का शासन नहीं कर सकती, उसी प्रकार
खुदा विना खुदावन्द यीशु मसीह की सहायता के संसार के मनुष्यों का तथा
मुक्ति का प्रबन्ध् नहीं कर सकता ।
स्वामी जी ने कहा कि---प्रथम तो जो उदाहरण है वह ठीक नहीं क्योंकि
जीव की परमेश्वर से कोर्इ समानता नहीं । पहले र्इश्वर का लक्षण होना चाहिये
कि र्इश्वर क्या वस्तु है । स्वामी जी ने उस के विशेषण, सर्वज्ञ, अविनाशी,
सर्वशक्तिमान् आदि बताये और कहा कि ऐसे गुणों वाला र्इश्वर किसी के
आधीन नहीं कि स्वयं प्रबन्ध् न कर सके और दूसरे से सहायता लेनी पड़े।
तीसरे यदि हम मान भी लें कि र्इसा कोर्इ अच्छे पुरुष थे तो भी एक मनुष्य
थे । और र्इश्वर न्यायाधीश है वह एक मनुष्य के कहने से अन्याय नहीं कर
सकता । जैसा जिस का कर्म होगा वैसा ही फल देगा । इसलिए यह असम्भव
है कि न्यायविरुण् परमेश्वर किसी की सिपफारिश मानकर पुण्य-पाप के अनुसार
फल न देवे । अत: र्इश्वर को स्थानापन्न भेजने की आवश्यकता नहीं ।
स्थानापन्न देना यह कार्य मनुष्यों का है । वह ऐसा स्वामी है कि समस्त कार्य
और प्रत्येक प्रबन्ध् विना स्थानापन्न के कर सकता है ।
बिशप साहब---क्योंकर प्रबन्ध् कर सकता है ?
स्वामी जी---शिक्षा अर्थात् ज्ञान के द्वारा ।
बिशप साहब---वह पुस्तक ज्ञान की कौन सी है ?
स्वामी जी---चारों वेद र्इश्वर की ओर से प्रमाण हैं । (१८ पुराणों का
नाम नहीं लिया ।)
बिशप साहब---क्या अठारह पुराण भी धर्मपुस्तक हैं ?
स्वामी जी---नहीं ।
बिशप साहब---चारों वेद कैसे आये, र्इश्वर ने किस को दिये, किस
ने संसार में पहले समझाये ?
स्वामी जी---अग्नि, वायु, आदित्य, अन्गिरा, चारों ऋषियों के आत्मा
में र्इश्वर ने वेदों का ज्ञान दिया, उन्होंने समझाया ।
बिशप साहब---वेद र्इश्वर की ओर से नहीं प्रत्युत वेद का बनाने वाला
एक ब्राह्मण है, जिस का नाम इस समय स्मरण नहीं रहा ।
स्वामी जी---ऐसा नहीं, वेद सृष्टि की आदि में परमात्मा ने प्रकाशित
किये । किसी ब्राह्मण ने इन को नहीं बनाया, प्रत्युत वेद पढ़ने से मनुष्य
ब्राह्मण बन सकता है और जो वेद न पढ़े वह कदापि ब्राह्मण नहीं कहला
सकता।
बिशप साहब---वे चारों मर गये या जीवित हैं ?
स्वामी जी---मर गये हैं ।
बिशप साहब---उनके पश्चात् उन का स्थानापन्न कौन हुआ और एक
के पश्चात् कौन स्थानापन्न होता रहा और अब कौन है ?
स्वामी जी---हजारों लाखों ऋषि मुनि उनके स्थानापन्न होते रहे ।
जैसे छ: शास्त्रों के कर्ता छ: ऋषि, उपनिषदों तथा ब्राह्मणों के लेखक ऋषि
मुनि लोग । उनके अतिरिक्त प्रत्येक काल में जो ऋषियों के निश्चित नियमों
के अनुसार चले, शुद्धाचारी हो वही स्थानापन्न हो सकता है परन्तु आप
बतलाइये र्इसा के पश्चात् आप के यहां अब तक कौन हुआ ?
बिशप साहब---हमारे यहां र्इसा के पश्चात् रोम का पोप अर्थात् उच्चतम
पादरी र्इश्वर का स्थानापन्न समझा जाता है । जो भूल हम लोगों से हो जाये
उस का सुधर उच्चतम पादरी अर्थात् रोम के पोप द्वारा होता है ।
स्वामी जी---और जो भूल रोम के पोप से हो उस का सुधर किस
प्रकार हो सकता है ? आप को पोप के अत्याचार और धर्मिक झगड़े जो
लूथर के काल से पहले और उस समय होते थे और कुछ अब तक जारी
हैं, भली प्रकार विदित होंगे और इसी प्रकार र्इसाइयों की पहली सभाओं का
वृतान्त और धर्मिक झगड़े और सार्वजनिक हत्याएं आप से छुपी न होंगी।
उन का सुधर किस प्रकार वह पोप जो स्वयम् उन का आरम्भकर्ता है और
जो स्वयम् उन रोगों में पंफसा हुआ है, कर सकता है ? यह बात ठीक वैसी
ही है जिस प्रकार हमारे पोप पौराणिक लोगों की ।
बिशप साहब इस का कोर्इ बुद्धिपूर्वक और युक्तियुक्त उत्तर जिस से
स्वामी जी और श्रोताओं का सन्तोष हो, न दे सके । तत्पश्चात् लगभग १२
बजे के समय स्वामी जी एक बड़ा गिर्जा देखने के लिए चले गये ।
(लेखराम पृष्ठ ६९१—६९३ )
विविध् विषय
(पं. लेखराम जी द्वारा किये हुए प्रश्नों का उत्तर---१७ मर्इ, १८८१ )
आर्यपथिक पं लेखराम जी अपने बनाये हुए महर्षि के जीवनचरित्रा
में लिखते हैं---
११ मर्इ, सन् १८८१ को संवाददाता पेशावर से स्वामी जी के दर्शनों
के निमित्त चलकर १५ की रात को अजमेर पहुंचा । और वहां पहुंचकर स्टेशन
के समीप वाली सराय में डेरा किया । और १७ मर्इ को प्रात:काल सेठ जी
के बागीचे में जाकर स्वामी जी का दर्शन प्राप्त किया । उन के दर्शन से
मार्ग के समस्त कष्टों को भूल गया और उन के सत्योपदेशों से समस्त समस्याएं
सुलझ गई । जयपुर के एक बंगाली सज्जन ने मुझ से प्रश्न किया था कि
आकाश भी व्यापक है और ब्रह्म अर्थात ईश्वर भी, दो व्यापक किस प्रकार इकट्ठे रह
सकते हैं ?
मुझ से इस का कुछ उत्तर न बन पाया । मैंने यही प्रश्न स्वामी जी
से पूछा । उन्होंने एक पत्थर उठाकर कहा कि इसमें अग्नि व्यापक है या
नहीं ?
मैंने कहा कि---व्यापक है ।
फिर पूछा कि---मिट्टी ? मैंने कहा कि---व्यापक है ।
फिर पूछा कि---जल ? मैंने कहा कि---व्यापक है ।
फिर पूछा कि---आकाश और वायु ? मैंने कहा कि---व्यापक हैं ।
फिर पूछा कि परमात्मा ? मैंने कहा कि---वह भी व्यापक है ।
कहा कि देखा कितनी चीजें हैं परन्तु सब इस में व्यापक हैं । वास्तव
में बात यह है कि जो जिस से सूक्ष्म होती है वह उस में व्यापक हो सकती
है । ब्रह्म चूंकि सब से अति सूक्ष्म है इसलिए सर्वव्यापक है, जिस से मेरी
शान्ति हो गर्इ ।
मुझ से उन्होंने कहा कि और जो तुम्हारे मन में सन्देह हों सब निवारण
कर लो मैंने बहुत सोच विचार कर दश प्रश्न लिखे जिन में से आठ मुझे
स्मरण हैं, शेष भूल गये ।
प्रश्न---जीव और ब्रह्म की भिन्नता में कोर्इ वेद का प्रमाण बतलाइये ?
उत्तर---यजुर्वेद का ४०वां अध्याय सारा जीव-ब्रह्म का भेद
बतलाता है।
प्रश्न---अन्य मत के मनुष्यों को शुद्ध करना चाहिये या नहीं ?
उत्तर---अवश्य करना चाहिये ।
प्रश्न---विद्युत् क्या वस्तु है और किस प्रकार उत्पन्न होती है ?
उत्तर---विद्युत् सर्वत्रा है और रगड़ से उत्पन्न होती है । बादलों की विद्युत्
भी बादलों और वायु की रगड़ से उत्पन्न होती है ।
मुझ से कहा कि २५ वर्ष से पूर्व विवाह न करना। कर्इ र्इसार्इ और
जैनी प्रश्न करने आते परन्तु शीघ्र निरुत्तर हो जाते थे । (लेखराम पृष्ठ ५३२ )
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