मंगलवार, 27 मई 2014

दान के फल यहां होते हैं वा परलोक में

प्रश्न---दान के फल यहां होते हैं वा परलोक में ?



उत्तर---सर्वत्रा होते हैं।



प्रश्न---स्वयं होते हैं वा कोर्इ फल देने वाला है?



उत्तर---फल देने वाला र्इश्वर है। जैसे कोर्इ चोर डाकू स्वयं बन्दीघर



में जाना नहीं चाहता, राजा उस को अवश्य भेजता है, धर्मात्माओं के सुख की रक्षा



करता, भुगाता, डाकू आदि से बचाकर उन को सुख में रखता है वैसे ही परमात्मा



सब को पाप पुण्य के दुख और सुखरूप फलौ को यथावत् भुगाता है।



प्रश्न---जो ये गरुड़पुराणादि ग्रन्थ हैं वेदार्थ वा वेद की पुष्टि करने वाले



हैं वा नहीं ?



उत्तर---नहीं, किन्तु वेद के विरोधी और उलटे चलते हैें तथा तन्त्रा भी



वैसे ही हैं। जैसे कोर्इ मनुष्य एक का मित्रा सब संसार का शत्राु हो, वैसा ही पुराण



और तन्त्रा का मानने वाला पुरुष होता है क्योंकि एक दूसरे से विरोध् कराने वाले



ये ग्रन्थ हैं। इन का मानना किसी विद्वान् का काम नहीं किन्तु इन को मानना



अविना है।



देखो! शिवपुराण में त्रायोदशी, सोमवार, आदित्यपुराण में रविऋ चन्ंखण्ड



में सोमग्रह वाले मंगल, बुध्, बृहस्पति, शुव्, शनैश्चर, राहु, केतु केऋ वैष्णव



एकादशीऋ वामन की द्वादशीऋ नृसिंह वा अनन्त की चतुर्दशीऋ चन्ंमा की पौर्णमासीऋ



दिक्पालों की दशमीऋ दुर्गा की नौमीऋ वसुओं की अष्टमीऋ मुनियों की सप्तमीऋ का£तक



स्वामी की “ाष्ठीऋ नाग की प/मीऋ गणेश की चतुथ्र्ाी गौरी की तृतीयाऋ अश्विनीकुमार



की द्वितीयाऋ आद्यादेवी की प्रतिपदा और पितरों की अमावास्या पुराणरीति से ये



दिन उपवास करने के हैं। औेर सर्वत्रा यही लिखा है कि जो मनुष्य इन वार और



तिथियों में अन्न, पान ग्रहण करेगा वह नरकगामी होगा।



अब पोप और पोप जी के चेलों को चाहिये कि किसी वार अथवा किसी



तिथि में भोजन न करें क्योंकि जो भोजन वा पान किया तो नरकगामी होंगे। अब



‘निर्णयसिन्ध्ु’, ‘धर्मसिन्ध्ु’, ‘व्रतार्वफ’ आदि ग्रन्थ जो कि प्रमादी लोगों के बनाये



हैं उन्हीं में एक----एक व्रत की ऐसी दुर्दशा की है कि जैसे एकादशी को शैव, दशमी



विण, कोर्इ द्वादशी में एकादशी व्रत करते हैं अर्थात् क्या बड़ी विचित्रा पोपलीला



है कि भूखे मरने में भी वाद विवाद ही करते हैं। जो एकादशी का व्रत चलाया

है उस में अपना स्वार्थपन ही है और दया कुछ भी नहीं।

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