रविवार, 1 जून 2014

प्रतिमा-पूजन वेद विरूद्ध

प्रतिमा-पूजन वेद विरूद्ध 



विषयवती वा प्रवृनिरुत्पन्ना मनस: स्थितिनिबन्ध्नी ।

(योग॰ समा॰ ३५)


इस सूत्रा के भाष्य में लिखा है कि--

एतेन चंद्रदित्यग्रहमणिप्रदीपरत्नादिषु प्रवृ्त्तिरुत्पन्ना विषयवत्येव

वेदितव्येति ।


इससे प्रतिमा-पूजन कभी नहीं आ सकता । क्योंकि इन में देवबुद्धि करना नहीं लिखा । किन्तु जैसे वे जड़ हैं, वैसे ही योगी लोग उनको जानते

हैं । और बाह्यमुख जो वृ्त्ति, उस को भीतर मुख करने के वास्ते योगशास्त्र

की प्रवृत्ति है । बाहर के पदार्थ का ध्यान करना, योगी लोग को नहीं

लिखा । क्योंकि जितने सावयव पदार्थ हैं, उनमें कभी चिन की स्थिरता नहीं

होती । और जो होवे तो मूर्तिमान् धन, पुत्रा, दारादिक के मयान में सब संसार

लगा ही है । परन्तु चि्त्त की स्थिरता कोर्इ की भी नहीं होती । इस वास्ते

यह सूत्रा लिखा--

विशोका वा ज्योतिष्मती (योग॰स॰६६)

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