प्रतिमा शब्द -- "दयानन्द शास्त्रार्थ, प्रश्नोनर-संग्रह"
इसके आगे जिन शब्दों के अर्थ के नहीं जानने से, टीकाकारों को भ्रम
हो गया है तथा नवीन ग्रन्थ बनाने वाले और कहने वाले तथा सुनने वाले
को भी भ्रम होता है । उन शब्दों का शास्त्रा रीति तथा प्रमाण और युक्ति से,
जो ठीक-ठीक अर्थ है, उन्हीं का प्रकाश संक्षेप से लिखा जाता है । प्रथम
तो एक प्रतिमा शब्द है ।
प्रतिमीयते यया सा प्रतिमा ।
अर्थात् प्रतिमानम् जिससे प्रमाण अर्थात् परिमाण किया जाये, उसको
कहना प्रतिमा, जैसे कि कृटांक, आध्पाव, पावसेर, सेर, पसेरी इत्यादि और
यज्ञ के चमसादिक पात्रा । क्योंकि इन से पदाथो के परिमाण किये जाते हैं।
इससे इन्हों का ही नाम है प्रतिमा । यही अर्थ मनु भगवान् ने मनुस्मृति में
लिखा--
तुलामानं प्रतिमानं सर्व च स्यात् सुलक्षितम् ।
षट्सु षट्सु च मासेषु पुनरेव परीक्षयेत् ।।
पक्ष-पक्ष में, वा मास-मास में, अथवा छठवें-छठवें मास तुला की राजा
परीक्षा करे । क्योंकि तराजू की दण्डी में भीतर छिद्र करके पारा उसमें डाल
देते हैं । जब कोर्इ पदार्थ को तौल के लेने लगते हैं, तब दण्डी को पीछे
नमा देते हैं । फिर पारा पीछे जाने से चीज अधिक आती है । और, जब
देने के समय में दण्डी आगे नमा देते हैं उससे चीज थोड़ी जाती है । इससे
तुला की परीक्षा अवश्य करनी चाहिए तथा प्रतिमान अर्थात् प्रतिमा की परीक्षा
अवश्य करे । राजा जिस से कि अधिक, न्यून प्रतिमा अर्थात् दुकान के बाट
जितने हैं, उन्हों का ही नाम प्रतिमा । इसी वास्ते प्रतिमा के भेदक अर्थात्
घाट बाढ़ तौलने वाले के उफपर दण्ड लिखा है--
संक्रमवजयष्टीनां प्रतिमानां च भेदक: ।
प्रतिकुर्याच्च तत्सव पंच दद्या्च्छतानि च ।।
यह मनु जी का श्लोक है । इसका अभिप्राय यह है कि संक्र्म अर्थात्
रथ, उस रथ के मवजा की यष्टि, जिसके उफपर मवजा बांधी जाती है, और
प्रतिमा छटांक आदिक बटखरे, इन तीनों को तोड़ डाले वा अधिक न्यून कर
देवे, उनको उससे राजा बनवा लेवे । और जैसा जिसका ऐश्वर्य, उसके योग्य
दण्ड करे । जो दरिद्र, होवे तो उससे पांच सौ पैसा राजा दण्ड लेवे । जो
कु्छ धनाढ्य होवे तो पांच सौ रुपया उससे दण्ड लेवे । और जो बहुत
धनाढय होवे, उससे पांच सौ अशर्फी दण्ड लेवे । रथादिकों को उसी के
हाथ से बनवा लेवे । इससे सज्जन लोग बटखरा तथा चमसादिक यज्ञ के
पात्रा उन्हीं को ही प्रतिमा शब्द से निश्चित जानें ।
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