मृत्यु ---
प्रश्न – मृत्यु सुख है या दुःख ? उत्तर – मृत्यु न सुख है न दूःख । यह सुख का कारण भी हो सकता है और दुःख का का भी । मृत्यु है क्या ? एक शरीर से जीव का निकलना और दूसरे शरीर में प्रवेश करना । हम जब एक मकान को छोङकर दूसरे में जाते हैं या कोट उतार कर दूसरा पहनते हैं तो उससे सुख भी हो सकता है और दुःख भी । जब एक पदाधिकारी एक पद से दूसरे पर जाता है तो यदि वेतन – वृद्धि या पद – वृद्धि होती है तो उसे प्रसन्नता होती है । यदि वेतन में कमी या पद छोटा हो तो दुःख होता है । इसी प्रकार मृत्यु के पश्चात हम को कैसा शरीर या कैसी परिस्थिति मिले , उसी को देख कर तो हम यह कह सकते हैं कि मृत्यु अच्छी हुई या बुरी । प्रश्न – किसी को मार डालना पुण्य है या पाप ? उत्तर – केवल मार डालने मात्र से पुण्य या पाप की व्यवस्था नहीं की जा सकती । फांसी देने वाला मनुष्य फांसी देते समय न पुण्य करता है और न पाप । हां , एक प्रकार से वह अपना कर्तव्य पालन करता है । जिसकी आज्ञा से फांसी दी जाती है उसके पुण्य – पाप का मापदण्ड उसकी अपनी कर्तव्यता है । बिना कर्तव्यता के स्वार्थ सिद्धि अथवा शत्रुता आदि से किसी को मारना पाप है । |
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