** प्रभु – प्रेम से परमानन्द **
अच्छा व इन्द्रं मतयः स्वर्युवः, सध्रीचीर्विश्वा उशतीरनूषत ।
परि ष्वजन्त जनयो यथा पतिं , मर्यं न शुन्ध्युं मघवानमूतये ॥
भावार्थ – मनुष्य का जितना प्रेम स्त्री – पुरूष के परस्पर भाव में है , अथवा जितनी कामना और दीनता , प्रार्थना , धन आदि पदार्थों के लिए करते हैं यदि इतना प्रेम और इतनी नम्रता परमेश्वर के प्रति धारण
करें तो अवश्य परमानन्द की प्राप्ति और संसार से रक्षा हो ।
अच्छा व इन्द्रं मतयः स्वर्युवः, सध्रीचीर्विश्वा उशतीरनूषत ।
परि ष्वजन्त जनयो यथा पतिं , मर्यं न शुन्ध्युं मघवानमूतये ॥
भावार्थ – मनुष्य का जितना प्रेम स्त्री – पुरूष के परस्पर भाव में है , अथवा जितनी कामना और दीनता , प्रार्थना , धन आदि पदार्थों के लिए करते हैं यदि इतना प्रेम और इतनी नम्रता परमेश्वर के प्रति धारण
करें तो अवश्य परमानन्द की प्राप्ति और संसार से रक्षा हो ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें