शनिवार, 24 मई 2014

" सत्यार्थ प्रकाश " क्या वेद ईश्वर कृत हैं -

" सत्यार्थ प्रकाश "
वेद विषय पर प्रश्नोत्तर

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प्रश्न किन के आत्मा में कब वेदों का प्रकाश किया ?
उत्तर अग्नेर्वा ऋग्वेदो जायते वायोर्यजुर्वेद: सूर्यात्सामवेद: । शत॰ ११.४.२.३
प्रथम सृष्टि की आदि में परमात्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा
इन ऋषियों के आत्मा में एकएक वेद का प्रकाश किया
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प्रश्न यो वै ब्राह्मणं विदधति पूर्व यो वै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै ॥
यह उपनिषत् का वचन है।
इस वचन से ब्रह्मा जी के ह्र्दय में वेदों का उपदेश किया है फिर अग्न्यादि
ऋषियों के आत्मा में क्यों कहा ?
उत्तर ब्रह्मा के आत्मा में अग्नि आदि के द्वारा स्थापित कराया देखो!
मनुस्मृति में क्या लिखा है
अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रायं ब्रं सनातनम्।
दुदोह यज्ञसिद्मयर्थमृग्यजु:सामलक्षणम्भ्॥ मनु॰ १।२३
जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न करके अग्नि आदि
चारों महर्षियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराये और उस ब्रह्मा ने अग्नि,
वायु, आदित्य और अगिरा से ऋग यजु: साम और अथर्ववेद का ग्रहण किया
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प्रश्न उन चारों ही में वेदों का प्रकाश किया अन्य में नहीं इस से
र्इश्वर पक्षपाती होता है ?

उत्तर वे ही चार सब जीवों से अधिक पवित्रात्मा थे, अन्य उन के
सदृश नहीं थे इसलिये पवित्रा विद्या का प्रकाश उन्हीं में किया ।
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प्रश्न किसी देशभाषा में वेदों का प्रकाश न करके संस्कृत में
क्यों किया?

उत्तर जो किसी देशभाषा में प्रकाश करता तो र्इश्वर पक्षपाती हो जाता–
क्योंकि जिस देश की भाषा में प्रकाश करता उन को सुगमता और विदेशियों को
कठिनता वेदों के पढ़ने पढ़ाने की होती इसलिये संस्कृत ही में प्रकाश किया, जो
किसी देश की भाषा नहीं और वेदभाषा अन्य सब भाषाओं का कारण है उसी
में वेदों का प्रकाश किया । जैसे र्इश्वर की पृथिवी आदि सृष्टि सब देश और देशवालों
के लिये एक सी और सब शिल्पविद्या का कारण है । वैसे परमेश्वर की विद्या की
भाषा भी एक सी होनी चाहिये, कि सब देशवालों को पढ़ने पढ़ाने में तुल्य परिश्रम
होने से र्इश्वर पक्षपाती नहीं होता । और सब भाषाओं का कारण भी है ।
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प्रश्न वेद र्इश्वरकृत हैं अन्यकृत नहीं इस में क्या प्रमाण ?
उत्तरजैसा र्इश्वर पवित्रा, सर्वविद्यावित्, शुण्गुणकर्मस्वभाव, न्यायकारी,
दयालु आदि गुण वाला है वैसे जिस पुस्तक में र्इश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव के
अनुवूफल कथन हो वह र्इश्वरकृतऋ अन्य नहीं ।
२. और जिस में सृष्टिक्रम प्रत्यक्षादि
प्रमाण, आप्तों के और पवित्रात्मा के व्यवहार से विरूद्ध कथन न हो, वह र्इश्वरोक्त
३.जैसा र्इश्वर का निर्भ्रम ज्ञान वैसा जिस पुस्तक में भ्रान्तिरहित ज्ञान का प्रतिपादन
हो वह र्इश्वरोक्त ।
४.जैसा परमेश्वर है और जैसा सृष्टिक्रम रक्खा है वैसा ही र्इश्वर,
सृष्टि, कार्य, कारण और जीव का प्रतिपादन जिस में होवे वह परमेश्वरोक्त पुस्तक
होता है ।
५.और जो प्रत्यक्षादि प्रमाण विषयों से अविरुद्ध शुद्धात्मा के स्वभाव से विरुद्ध
न हो ।
इस प्रकार के वेद है । अन्य बाइबल, कुरान आदि पुस्तकें नहीं इसकी स्पष्ट
व्याख्या बाइबल और कुरान के प्रकरण में तेरहवें और चौदहवें समुल्लास में की
जायगी ।
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प्रश्न वेद की र्इश्वर से होने की आवश्यकता कुछ भी नहीं , क्योंकि
मनुष्य लोग क्रमश: ज्ञान बढ़ाते जाकर पश्चात् पुस्तक भी बना लेंगे ?

उत्तर कभी नहीं बना सकते क्योंकि विना कारण के कार्योत्पत्ति का
होना असम्भव है , जैसे जंगली मनुष्य सृष्टि को देख कर भी विद्वान् नहीं होते
और जब उन को कोर्इ शिक्षक मिल जाय तो विद्वान् हो जाते हैं । और अब भी
किसी से पढ़े विना कोर्इ भी विद्वान् नहीं होता । इस प्रकार जो परमात्मा उन आदिसृष्टि
के ऋषियों को वेदविद्या न पढ़ाता, और वे अन्य को न पढ़ाते तो सब लोग अविद्वान्
ही रह जाते । जैसे किसी के बालक को जन्म से एकान्त देश, अविद्वानों वा पशुओं
के संग में रख देवे तो वह जैसा संग है वैसा ही हो जायेगा इसका दृष्टान्त जंगली
भील आदि है ।
जब तक आर्यावर्त्त देश से शिक्षा नहीं गर्इ थी तब तक मिश्र, यूनान और
यूरोप देश आदिस्थ मनुष्यों में कु्छ भी विद्या नहीं हुर्इ थी और इंगलैण्ड के कुलुम्बस
आदि पुरुष, अमेरिका में जब तक नहीं गये थे , तब तक वे भी सहस्रों, लाखों क्रोड़ों
वर्षो से मूर्ख थे अब सुशिक्षा के पाने से विद्वान् हो गये हैं वैसे
ही परमात्मा से सृष्टि की आदि में विद्या शिक्षा की प्राप्ति से उत्तरोत्तर काल में
विद्वान् होते आये ।
स पूर्वेषामपि गुरु: कालेनानवच्छेदात् ॥
योग सूत्र समाधिपाद ३६
जैसे वर्तमान समय में हम लोग अ्या हपकों से पढ़ ही के विद्वान् होते हैं
वैसे परमेश्वर सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न हुए अग्नि आदि ऋषियों का ‘गुरु’ अर्थात्

पढ़ानेहारा है । क्योंकि जैसे जीव सुषुप्ति और प्रलय में ज्ञानरहित हो जाते हैं वैसा
परमेश्वर नहीं होता । उस का ज्ञान नित्य है , इसलिये यह निश्चित जानना चाहिये
कि विना निमित्त से नैमि्त्तिक अर्थ सिद्ध कभी नहीं होता ।
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प्रश्न वेद संस्कृतभाषा में प्रकाशित हुए और वे अग्नि आदि ऋषि लोग
उस संस्कृतभाषा को नहीं जानते थे फिर वेदों का अर्थ उन्होंने कैसे जाना ?

उत्तर परमेश्वर ने जनाया– और धर्मात्मा योगी महर्षि लोग जब जब
जिस जिस के अर्थ को जानने की इच्छा करके ध्यानावस्थित हो परमेश्वर के स्वरूप
में समाधिस्त हुए, तबतब परमात्मा ने अभीष्ट मन्त्रों के अर्थ जनाये । जब बहुतों
के आत्माओं में वेदार्थप्रकाश हुआ तब ऋषि मुनियों ने वह अर्थ और ऋषि मुनियों
के इतिहासपूर्वक ग्रन्थ बनाये । उन का नाम ब्रह्माण अर्थात् ‘ब्रह्म’ जो वेद उसका
व्याख्यान ग्रन्थ होने से ब्रह्माण नाम हुआ । और
ऋषियो मन्त्रदृष्टय: मन्त्रान् सम्प्रादु: ॥ नि॰ ७ ।३,१।२०
जिसजिस मन्त्रार्थ का दर्शन जिसजिस ऋषि को हुआ और प्रथम ही
जिस के पहले उस मन्त्र का अर्थ किसी ने प्रकाशित नहीं किया था, किया और
दूसरों को पढ़ाया भी, इसलिये अद्यावधि उस-उस मन्त्र के साथ ऋषि का नाम
स्मरणार्थ लिखा लिखाया आता है । जो कोर्इ ऋषियों को मन्त्राकर्ता बतलावें उन को मिथ्यावादी
समझें , वे तो मन्त्रों के अर्थप्रकाशक है ।
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प्रश्न वेद किन ग्रन्थों का नाम है?
उत्तर ऋग, यजु:, साम और अथर्व मन्त्रासंहिताओं का अन्य का नहीं ।
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प्रश्न मन्त्राब्रह्माणयोर्वेदनामधेयम् ॥
(इत्यादि कात्यायनादिकृत प्रतिज्ञासूत्रादि १।१ का अर्थ क्या करोगे?
उत्तर देखो! संहिता पुस्तक के आरम्भ अध्याय की समाप्ति में वेद शब्द
यह सनातन से शब्द लिखा आता है और ब्रह्माण पुस्तकों के आरम्भ वा अध्याय
की समाप्ति में कहीं नहीं लिखा । और निरुक्त में----
इत्यपि निगमो भवति॥(निरूक्त ५।३) इति ब्रह्माणम ॥
छान्दोब्रह्माणानि च तद्विषयाणि यह पाणिनीय सूत्रा है। भाग-१ क्रमशः---

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