*अग्निहोत्र अथवा
होम मे चार
प्रकार के द्रव्य होते
हैं-----
१. सुगंधित – कस्तूरी , केशर , अगर , तगर , इलायची , जायफल आदि । २. पुष्टिकारक – घृत , दूध , फल , कन्द ,अन्न , चावल , गेहूं , उङद आदि । ३. मिष्ट – शक्कर , शहद , छुवारे , दाख आदि । ४. रोगनाशक – सोमलता अर्थात गिलोय आदि । *यज्ञकुन्ड का परिमाण – सम चौरस हो , जितना चौङा हो उतना ही गहरा हो तथा नीचे की चौङाई ऊपर की चौङाई की १/४ अर्थात चतुर्थांस हो । *यज्ञसमिधा किस लकङी की हो --- पलाश , शमी, पीपल , बङ , गूलर , आम , बिल्व आदि की हो । *ऋत्विजों के लक्षण – अच्छे विद्वान , धार्मिक , जितेन्द्रिय , कर्म करने में कुशल , निर्लोभी , परोपकारी , दुर्व्यसनों से रहित , कुलीन , सुशील , वैदिक मत वाले हों ,यज्ञ में ये १ , २ , ३ अथवा चार हों । *यजमान सपत्नी ( अगर हो तो ) पूर्व की ओर मुह करके बैठे , पत्नी , पति के दांई ओर बैठे । *यज्ञ मे यजमान सफेद वस्त्र ही पहिनें । *यज्ञ पात्र सुवर्ण , चांदी , कांसा , काष्ठ आदि के हों । * कम से कम छह मास घ्रत की प्रत्येक आहुती अवश्य देवें । * जातकर्म संस्कार मे घी और मधु दोनों बराबर मिलाकर ,सोने की शलाका से बालक की जीभ पर ‘ओ३म’ लिखे तथा दक्षिण कान में ‘वेदोसीति’ अर्थात तेरा गुप्तनाम वेद है ऐसा सुनाए । तथा तालू पर घृत का फोहा रखे । • नाम करण संस्कार – यह जन्म से लेके १० दिन छोङ ११वें वा १०१ वें दिन अथवा दूसरे वर्ष के आरम्भ में जिस दिन जन्म हुआ हो , नाम धरे । |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें