प्रश्न र्इश्वर
साकार है वा
निराकार?
उत्तर निराकार। क्योंकि जो
साकार होता तो
व्यापक नहीं हो
सकता।
जब व्यापक न होता
तो सर्वज्ञादि गुण
भी र्इश्वर में
न घट सकते–
क्योंकि परिमित
वस्तु में गुण,
कर्म, स्वभाव भी
परिमित रहते हैं
तथा शीतोष्ण, क्षुध,
तृषा और
रोग, दोष, छेदन,
भेदन आदि से
रहित नहीं हो
सकता इस
से यही निश्चित
है
कि र्इश्वर निराकार है
जो
साकार हो तो
उसके नाक, कान,
आंख आदि अवयवों
का बनानेहारा दूसरा होना
चाहिये क्योंकि
जो संयोग से
उत्पन्न होता है
उस को
संयुक्त करनेवाला निराकार चेतन
अवश्य होना चाहिये
जो
कोर्इ यहां ऐसा
कहै
कि र्इश्वर ने स्वेच्छा
से आप ही
आप अपना शरीर
बना लिया तो
भी वही सिद्ध
हुआ कि शरीर
बनने के पूर्व
निराकार था इसलिए
परमात्मा कभी शरीर
धरण
नहीं करता किन्तु
निराकार होने से
सब जगत् को
सूक्ष्म कारणों से स्थूलाकार
बना
देता है
प्रश्न र्इश्वर
सर्वशक्तिमान् है वा
नहीं?
उत्तरहै। परन्तु जैसा तुम
सर्वशक्तिमान् शब्द का
अर्थ जानते हो
वैसा
नहीं– किन्तु सर्वशक्तिमान् शब्द
का यही अर्थ
है कि र्इश्वर
अपने काम अर्थात्
उत्पनि, पालन, प्रलय आदि
और सब जीवों
के पुण्य पाप
की यथायोग्य व्यवस्था
करने में किंचित
भी किसी की सहायता
नहीं लेता अर्थात्
अपने अनन्त सामर्थ्य
से ही सब
अपना काम पूर्ण
कर लेता है
प्रश्नहम तो ऐसा
मानते हैं कि
र्इश्वर चाहै सो
करे क्योंकि उसके
ऊपर दूसरा कोर्इ नहीं
है–
उत्तर वह क्या चाहता
है? जो तुम
कहो कि सब
कुछ चाहता और
कर सकता है
तो हम तुम
से पूछते हैं
कि परमेश्वर अपने
को मार, अनेक
र्इश्वर
बना, स्वयम् अविद्वान्, चोरी,
व्यभिचारादि पाप कर्म
कर और दु:खी भी
हो सकता
है? जैसे ये
काम र्इश्वर के
गुण, कर्म, स्वभाव
से विरुद्ध हैं तो
जो तुम्हारा कहना
कि वह सब
कुछछ कर सकता
है, यह कभी
नहीं घट सकता।
इसीलिए सर्वशक्तिमान्
शब्द का अर्थ
जो हम ने
कहा वही ठीक
है
प्रश्न परमेश्वर
आदि है वा
अनादि?
उत्तर अनादि
अर्थात् जिस का
आदि कोर्इ कारण
वा समय न
हो उस
को अनादि कहते हैं इत्यादि सब अर्थ
प्रथम समुल्लास में
कर दिया है
देख लीजिये–
प्रश्न परमेश्वर
क्या चाहता है?
उत्तर सब की भलार्इ
और सब के
लिए सुख चाहता
है परन्तु स्वतन्त्राता
के साथ किसी
को विना पाप
किये पराधीन नहीं
करता–
प्रश्न परमेश्वर की स्तुति,
प्रार्थना और उपासना
करनी चाहिए वा
नहीं?
उत्तर करनी चाहिये–
प्रश्न क्या
स्तुति आदि करने
से र्इश्वर अपना
नियम छोड़ स्तुति,
प्रार्थना
करनेवाले का पाप
छुड़ा देगा?
उत्तर नहीं–
प्रश्न तो फिर
स्तुति प्रार्थना क्यों करना?
उत्तर उनके
करने का कल
अन्य ही है–
प्रश्न क्या
है?
उत्तर स्तुति
से र्इश्वर में
प्रीति, उस के
गुण, कर्म, स्वभाव
से अपने
गुण, कर्म, स्वभाव का
सुधरना, प्रार्थना से निरभिमानता,
उत्साह और सहाय
का
मिलना, उपासना से परब्रम्हसे
मेल और उसका
साक्षात्कार होना–
प्रश्न इनको
स्पष्ट करके समझाओ ?
उत्तर जैसे
र्इश्वर की स्तुति--वह परमात्मा
सब में व्यापक,
शीघ्रकारी और अनन्त
बलवान् जो शुण्,
सर्वज्ञ, सब का
अन्तर्यामी, सर्वोपरि विराजमान, सनातन,
स्वयंसिद्ध,
परमेश्वर अपनी जीवरूप
सनातन अनादि प्रजा
को अपनी सनातन
विद्या से यथावत्
अथोद्व का बोध्
वेद द्वारा कराता
है– यह सगुण
स्तुति अर्थात् जिस-जिस
गुण से
सहित परमेश्वर की स्तुति
करना वह सगुणऋ
;अकायद्ध अर्थात् वह कभी
शरीर
धरण व जन्म
नहीं लेता, जिस
में छिं नहीं
होता, नाड़ी आदि
के बन्ध्न में
नहीं
आता और कभी
पापाचरण नहीं करता,
जिस में क्लेश,
दु:ख, अज्ञान
कभी नहीं
होता, इत्यादि जिस-जिस
राग, द्वेषादि गुणों
से पृथक मानकर
परमेश्वर की स्तुति
करना है वह
निर्गुण स्तुति है– इस
से कल यह
है कि जैसे
परमेश्वर के गुण
हैं वैसे गुण,
कर्म, स्वभाव अपने
भी करना। जैसे
वह न्यायकारी है
तो आप भी
न्यायकारी होवे– और जो
केवल भांड के
समान परमेश्वर के
गुणकीर्तन करता जाता
और अपने चरित्रा
नहीं सुधरता उसका
स्तुति करना व्यर्थ
है
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