पाखन्डी इस मन्त्र का गलत अर्थ निकालकर कहते है कि इस मन्त्र का इतनी बार जाप कराने से फलाना संकट दूर होता है ऐसा सोचना भी बिलकुल गलत है --
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम ।
उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृताम ॥ यजुर्वेद ३ । ३०
भावार्थ – हम लोग शुद्ध गंधयुक्त ; शरीर , आत्मा और समाज के बल को बढानेबाला जो रूद्ररूप जगदीश्वर है उसकी निरन्तर स्तुति करें । उसकी कृपा से जैसे खरबूजा – फल पककर लता के सम्बन्ध से छूटकर अमृत के तुल्य होता है , वैसे हम लोग भी प्राण वा शरीर से छूट जावें और मोक्षरूप सुख से श्रद्धारहित कभी न होवें ।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम ।
उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृताम ॥ यजुर्वेद ३ । ३०
भावार्थ – हम लोग शुद्ध गंधयुक्त ; शरीर , आत्मा और समाज के बल को बढानेबाला जो रूद्ररूप जगदीश्वर है उसकी निरन्तर स्तुति करें । उसकी कृपा से जैसे खरबूजा – फल पककर लता के सम्बन्ध से छूटकर अमृत के तुल्य होता है , वैसे हम लोग भी प्राण वा शरीर से छूट जावें और मोक्षरूप सुख से श्रद्धारहित कभी न होवें ।
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