वैदिक धर्म की प्रमाणिकता !
By Veda Mandan Pakhand Khandan on Wednesday, May 7, 2014 at 2:00pm
वैदिक
धर्म की प्रमाणिकता !इस तथ्य को विश्व के सभी इतिहासकार , धार्मिक
विद्वान् ,और वैज्ञानिक स्वीकार कर चुके हैं ,वैदिक धर्म सबसे प्रचीन धर्म
है , और वेद ही धर्म का मूल हैं .केवल वेदों के सिद्धांत ही विज्ञानं की
कसौटी पर खरे पाए गएँ हैं . क्योंकि वेद को लेन वाला कोई फ़रिश्ता नहीं था
,और न वेद सातवें आसमान से जमीन पर उतारे गए थे .इनके सिद्धांत सार्वभौमिक
और अटल हैं . जो एकेश्वरवाद (Monotheism ) पर आधारित हैं .लेकिन बड़े दुःख
की बात है कि आजकल के हिन्दू वेद के इस सिद्धांत को छोड़कर एक ईश्वर की जगह
, भुत प्रेत , साईँ , फ़क़ीर ,यहाँ तक कब्रों तक की पूजा करने लगे हैं .और
यही कारण है कि मुसलमान हिन्दुओं को मुशरिक , और काफ़िर कहते हैं . जबकि
एकेश्वरवाद एक वैदिक सिद्धांत है , जो भारत से निकल कर .ईरान से होते हुए
पुरे मध्य एशिया तक फ़ैल गया था .जिसे इस्लाम ने भी स्वीकार कर लिया .बाद
में सिख धर्म ने भी एकेश्वरवाद की पुष्टि कर दी .प्रमाण के लिए उपनिषद् ,
कुरान और श्रीगुरु ग्रन्थ साहब के ऐसे अंश दिए जा रहे हैं ,जिनमे कुछ
शब्दों के अंतर जरुर हैं ,लेकिन सबका आशय और भाव एक ही है .1-वैदिक
धर्म"दिव्यो ह्य मूर्तः पूरुषः सबाह्यान्तारो ह्यजः ,अप्रमाणो ह्यमनाः
शुभ्रो ह्यक्षरात परतः परः .मुण्डकोपनिषद -मुण्डक 2 मन्त्र 2अर्थ -" निश्चय
ही वह इश्वर आकर रहित और अन्दर बाहर व्याप्त है ,वह जन्म के विकार से रहित
उसके न् तो प्राण हैं ,न इन्द्रियां है .न मन है .वह इनके विना ही सब कुछ
करने में समर्थ हैं .वह अक्षर यानि अविनाशी हैं .और जीवात्मा से अत्यंत
श्रेष्ठ हैइसी प्रकार एक और जगह कहा गया है ," न तस्य कश्चित् पतिरस्ति
लोके ,न चेशिता नैव च तस्य लिङ्गम ,स कारणम करणाधिपाधिपो ,न चास्य
कश्चित्जनिता न चाधिपःश्वेताश्वतर उपनिषद -अध्याय 6 मन्त्र 9अर्थ
-"सम्पूर्ण लोक में उसका कोई स्वामी नहीं है ,और न कोई उसपर शासन करने वाला
है .और न कोई उसका लिंग ( gendar ) है. वही कारण और सभी कारणों का अधिपति
है .और न किसी ने उसे जन्म दिया है और न कोई उसका पालक ही है "2-इस्लामقُلْ
هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ ١ اللَّهُ الصَّمَدُ ٢ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ ٣
وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُوًا أَحَدٌ ٤ "سورة الإخلاص -112:"कुल हुवल्लाहू
अहद .अल्लाहुससमद .लम यलिद व् लम यूलद .व् लम यकुन कुफ़ुवन अहद"सूरा इखलास
-112अर्थ -कह दो कि अल्लाह एक है ,अल्लाह निराधार और सर्वाधार है ,उसकी कोई
औलाद नहीं है और न वह किसी की औलाद है .और कोई ऐसा नहीं जो उसके बराबर हो
.3-सिख धर्मੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ
ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ਜਪੁ ॥ ਆਦਿ ਸਚੁ ਜੁਗਾਦਿ ਸਚੁ ॥ਹੈ ਭੀ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਹੋਸੀ ਭੀ ਸਚੁ ॥੧ੴ सति
नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥ जपु ॥
आदि सचु जुगादि सचु ॥ है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥॥ १॥श्रीगुरुग्रंथ साहब -
मूलमन्त्रअर्थ -इश्वर है ,उसका नाम ओंकार और सत्य है .वह जगतका कर्ता है .
निर्भय है . वर हर प्रकार के वैर से रहित काल से परे है ,वह अजन्मा और
स्वयंभू है .गुरु के प्रसाद से उसी के नाम का जाप करो .वह ईश्वर प्रारंभ
में भी सत्य है और युगों तक सत्य ही रहेगा "वेद और कुरान के उद्धरण साथ में
देने से हमारा उदेश्य इस्लाम को वैध सिद्ध करना नहीं है और उसका महिमामंडन
करना भी नहीं है , क्योंकि यह ज्ञान भारत से ही अरब गया था .और दूसरों से
धन चुराने वाले को धनवान नहीं कहा जा सकता .जहाँ तक श्रीगुरु ग्रन्थ साहब
की बात है ,तो उसमे ऐसी हजारों बातें मौजूद है ,जो वेदों शिक्षा से मेल
खाती हैं .हमारा वास्तविक उदेश्य तो उन हिन्दुओं को धर्म के बारे में सही
बात बताना है ,जो पाखंड को ही धर्म समझ रहे हैं . और धर्म की जड़ काट कर
पत्तों की सिंचाई कर रहे हैं .और ईश्वर की उपासना की जगह अनेकों देवी देवता
, भुत प्रेत यानि पीर औलिया और कब्रों पर भी सर झुकाते है , इनके लिए गीता
में कहा गया है ,यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि
राजसाः।प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये जयन्ते तामसा जनाः॥17/4अर्थात सात्विक लोग
तो सिर्फ ईश्वर की उपासना करते हैं . और राजसी लोग यक्ष ,रक्ष ( semi gods )
की पूजा करते हैं , जो सिर्फ कल्पित व्यक्ति यानि अर्ध मानव है और सबसे
निकृष्ट वह तामसी लोग हैं वह भूत यानि मुर्दों की कब्रों ,इत्यादि की पूजा
करते है ,इत्यादि में निर्मल बाबा , साईँ बाबा , राधे माँ जैसे ढोंगी हैयही
नहीं अज्ञानी लोग मुसलमानों की नक़ल करके भूखे रहने को ही तप समझते है ,
जबकि एसा किसी ग्रन्थ में नहीं लिखा . लोग दिन भर तो भूखे रहते हैं . और
शाम को चौगुना खाते है ,इसे तप नहीं कहते .जैसा गीता में कहा है
,अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः
कामरागबलान्विताः॥17/5अर्थात शास्त्र विरुद्ध होने पर भी किसी की देखादेखी
जो लोग घोर तप् करते हैं ,वह पाखंडी ,अहंकारी और दिखावे की कामना से यह
किया करते हैं , यह तप नहीं है .क्योंकि योग सूत्र में कहा है ,"सुखे दुखे
समौ भूत्वा समत्वं योग उच्यते " यही गीता में कहा है,सुखदुःखे समे कृत्वा
लाभालाभौ जयाजयौ ।ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥3/28अर्थात सुख
और दुःख , हार और जीत , लाभ और हानि की परवाह किये बिना ही धर्म की रक्षा
के लिए हम युद्ध करेंगे तो हमें कोई पाप नहीं लगेगा .यानी पाप तो तब लगेगा
जब हम मूक दर्शक बने तमाशा यानि टी वी देखते रहेंगे ,या सोचते रहेंगे कि
यदि हम सत्य और धर्म का साथ देंगे तो हमें सम्प्रदायवादी कहेंगे .भर्तरि
शतक में एक श्लोक है ,"निन्दन्तु नीति निपुणा , यदि वा स्तुवन्ति ,लक्ष्मी
समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टमअद्यैव मरणमस्तु युगान्तरे वान्यायात पथः
प्रविचलन्ति पदम् न धीराः .अर्थात - चाहे बातों में निपुण लोग हमारी निंदा
करें या हमारी तारीफ़ करें ,चाहे हमारे पास धन का भंडार हो जाये या हम
कंगाल हो जाएँ ,और चाहे हम आज ही मर जाएँ , या युगों तक जीवित रहें . लेकिन
सत्य के मार्ग से कभी विचलित नहीं हो सकते .और यदि मानते हैं कि वैदिक
धर्म प्रमाणिक है तो उसको बचाने , और धर्म के बहाने होने वाले आतंक का
विरोध करिएहमें उपलब्ध सभी साधनों का उपयोग करके देश द्रोहियों और धर्म के
शत्रुओं का मुकाबला करना होगा .यही धर्म है"विनाशाय च दुष्क्रताम "
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