मुर्दों को गाङाने
तथा जलाने पर
तुलना ----
१. मृत शरीर
को जलाने से
भूमि बहुत कम
खर्च होती है
। कब्रों से
स्थान – स्थान पर बहुत
सी भूमि घिर
जाती है ।
२. कब्रिस्थान के कारण
बहुत से लोग
वायु को दूषित
कर देते हैं
। वायु के
दूषित होने से
वह फैल कर
समाज में रोग
फैलने का कारण
बनती है ।
मुर्दो को जला
देने से यह
नही होता ।
३. जो जल
कब्रिस्थान के पास
होकर जाता है
वह रोग का
कारण बन जाता
है । जलाने
से ऐसा नहीं
होता ।
४. कुछ पशु
मृत-शरीर को
उखाङकर खा जाते
हैं और रोगी
शरीर को खाने
से वे स्वयं
रोगी बनकर मनुष्यों
में भी रोग
फैलाते हैं ।
जलाने से यह
बुराई नहीं होती
।
५. कुछ कफन
चोर कब्र खोदकर
शरीर का कफन
उतार लेते हैं
। इस प्रकार
मृतक के संबंधियों
के मनोभावों को
ठेस पहुंचती है
। मुर्दो को
जला देने से
यह नही होता
।
६. लाखों बीघा जमीन
संसार में कब्रिस्थान
के कारण रुकी
पङी है ।
जलाना शुरु करने
से यह खेती
तथा मकान बनाने
के काम आएगी
।जिन्दों के लिये
ही जमीन थोङी
पङ रही है,
उसे मुर्दो ने
घेर रखा है
।
७. दरगाहों की समाधि
पूजा , कब्रों की पूजा
, पीरों की पूजा
, मुर्दो की अनेक
प्रकार के पाखंड
मुर्दो को जला
देने से खत्म
हो जाएंगे ।
८. इन मजारों
की पूजा करने
, चढावा चढाने और आने
जाने में जो
करोङो रुपया व्यर्थ
का व्यय होता
है वह बच
जाएगा ।
शरीर पृथ्वी , जल , अग्नि
,वायु , आकाश इन
पांच भूतों का
बना है ।
इसलिये मरने के
बाद शरीर के
इन पांचों भूतों
को जल्दी से
जल्दी सूक्ष्म करके
अपने मूल रुप
पहुचा देना ही
वैदिक पद्धति है
। अग्नि द्वारा
दाह कर्म ही
एक ऐसा साधन
है जिससे मृत
देह के सब
तत्व शीघ्र ही
अपने मूल रूप
में पहुंच जाते
हैं । “” संस्कार
चंद्रिका ““
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