शनिवार, 17 मई 2014

यजुर्वेद ३१ ।२

यजुर्वेद ३१ ।२ 
पुरूष एवेदं सर्व यद भूतं यच्च भाव्यम ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥ यजुर्वेद ३१ ।२
भावार्थ – हे मनुष्य ! जो उत्पन्न हुआ और जो उत्पन्न होने वाला और जो पृथिवी आदि के सम्बन्ध से अत्यंत बढता है उस इस प्रत्यक्ष , परोक्षरूप समस्त जगत को अविनाशी , मोक्षसुख वा कारण का अधिष्ठाता , सत्य गुण कर्म स्वभावो से परिपूर्ण परमात्मा ही रचता है । यजुर्वेद ३१ ।२

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