रविवार, 18 मई 2014

ईश्वर निराकार और अजन्मा है यजु॰ ४०।८

भगवान निराकार और अजन्मा अर्थात कभी न जन्म लेने वाला है-----
“” यजुर्वेद “”

स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरंशुद्ध्मपापविद्धम ।
कविर्मनीषी परिभूः स्वयव्हह्रभूर्याथातथ्यतोअर्थान व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः
समाभ्यः ॥ यजु॰ ४०।८

अर्थात----- जो ब्रह्म शीघ्रकारी , तेजस्वी , सर्वशक्तिमान ( अकायम अव्रणम अस्नाविरम ) कारण , सूक्ष्म , एवं स्थूल शरीरों से रहित अर्थात कभी भी नस नाडी के बन्धन मे न आनेवाला अविद्या आदि दोषों से रहित , सदा पवित्र , पापसंसर्ग से सदा पृथक , सर्वज्ञ , अन्तर्यामी दुष्टों का तिरस्कार करने वाला ,( स्वयंभू ) स्वसत्ता में परानपेक्ष , अनादिस्वरूप अनादि स्वरूप अर्थात जिसकी संयोग से उत्पत्ति , विभाग से नाश , माता पिता , गर्भवास ,जन्म , वृद्धि ह्रास , मरण , कभी नही होते ( परिअगात ) सर्वत्र व्यापक है । वही परमेश्वर नित्य जीवरूप प्रजाओं को ( याथातथ्यतः ) ठीक ठीक रीति से वेद द्वारा सब पदार्थों को देता है अथवा कर्मफल देता है ।
इस मन्त्र मे ईश्वर के अनेक गुणों का वर्णन है, यहां विशेष उल्लेख के योग्य उसका सब शरीर बन्धनों से रहित है । किस मनोरम रीति से ईश्वर की निराकारता का प्रतिपादन किया है ।   

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