गायत्री मन्त्र ओउम् भूर्भुवः स्वः | तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि | धियो यो नः प्रचोदयात् ||
भु स्तुति - हे प्राणप्रिय बहुत प्रेम करने योग्य प्रभु ! आप मुझ आत्मा के अन्दर हो ऐसा मैं अनुभव करके प्रत्यक्ष देख रहा हूँ |
भावार्थ - हे बहुत प्रेम करने योग्य प्रभु ! आप मुझ पर ऐसी कृपा कीजिए जिससे मैं आपसे बहुत प्रेम करने लग जाउँ अर्थात् मै उल्टे संस्कारों (आदतों) के वशीभूत होकर न चाहता हुआ भी मन, बुद्धि, इन्द्रियों से उल्टे अर्थात् व्यर्थ, दोषपूर्ण अव्यवस्थित कार्य कर लेता हूँ और अच्छे संस्कारों की न्यूनतावश चाहता हुआ भी मन, बुद्धि, इन्द्रियों से अच्छे अर्थात् आवश्यक, गुणवर्धक, व्यवस्थित कार्य नहीं कर पाता हूँ |
अतः प्रभु ! मुझ आत्मा के अन्दर से उल्टे संस्कारों को समाप्त करके अच्छे संस्कारों को भर दीजिए जिससे प्रभु ! मेरा आपसे बहुत प्रेम हो जाएगा और व्यर्थ, दोषपूर्ण, अव्यवस्थित कार्य करने की प्रवृति दिन-प्रतिदिन घटती ही जाएगी |
भु स्तुति - हे प्राणप्रिय बहुत प्रेम करने योग्य प्रभु ! आप मुझ आत्मा के अन्दर हो ऐसा मैं अनुभव करके प्रत्यक्ष देख रहा हूँ |
भावार्थ - हे बहुत प्रेम करने योग्य प्रभु ! आप मुझ पर ऐसी कृपा कीजिए जिससे मैं आपसे बहुत प्रेम करने लग जाउँ अर्थात् मै उल्टे संस्कारों (आदतों) के वशीभूत होकर न चाहता हुआ भी मन, बुद्धि, इन्द्रियों से उल्टे अर्थात् व्यर्थ, दोषपूर्ण अव्यवस्थित कार्य कर लेता हूँ और अच्छे संस्कारों की न्यूनतावश चाहता हुआ भी मन, बुद्धि, इन्द्रियों से अच्छे अर्थात् आवश्यक, गुणवर्धक, व्यवस्थित कार्य नहीं कर पाता हूँ |
अतः प्रभु ! मुझ आत्मा के अन्दर से उल्टे संस्कारों को समाप्त करके अच्छे संस्कारों को भर दीजिए जिससे प्रभु ! मेरा आपसे बहुत प्रेम हो जाएगा और व्यर्थ, दोषपूर्ण, अव्यवस्थित कार्य करने की प्रवृति दिन-प्रतिदिन घटती ही जाएगी |
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