क्या हिन्दू धर्म में बहुविवाह है ?
हिन्दुत्व पर डा.जाकिर नाइक के इरादों को लेकर प्रकाशित हमारे विश्लेषण के तुरंत बाद कई ज़हर भरे सन्देश आए, साथ ही उनकी किताब “Answers to Non- Muslims’ Common Questions about Islam” की एक प्रति भी मिली, जो उनके छली तर्कों का एक और बेहतरीन नमूना पेश करती है | हम उनके भाषणों की झलक भी देख चुके हैं, जिन में वे अपनी किताब का पाठ करते नजर आते हैं| वैसे इस किताब के कई खंडन पहले ही उपलब्ध हैं |
हिंदुत्व के प्रति मिथ्या अवधारणाओं में बढ़ोतरी करने की उनकी इस स्वयं घोषित शोध की साज़िश से हमें आपत्ति है | मुस्लिमों के लिए लिखे गये उनके लेख में हिंदुत्व की अधिक चर्चा रहती है तथा हिंदुत्व के लेख में इस्लाम का ज्यादा बख़ान होता है ( देखें FAQ on Hinduism)| मैं समझ सकता हूं कि उस की इस चकराहट का असल तथ्य वर्तमान की राजनितिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियां हैं जो ८० करोड़ हिन्दुओं के धर्मान्तरण का आसान आधार उपलब्ध कराती हैं | जिसके लिए डा. जाकिर नाइक द्वारा संचालित इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन और पीस टी.वी प्रयत्नशील हैं और कुछ महीनों पहले ऐलान भी कर चुके हैं कि वे आगामी पांच वर्षों में हिंदुस्तान को दारुल- इस्लाम बनाएंगे|
इसके अलावा, बहुत से भटकों को इस भविष्यवाणी पर विश्वास है कि भारत को पराजित करने पर ही ईसा मसीह फिर से आ पाएंगे और इस दुनिया का अंत होगा, जिस के बाद कयामत के दिन उन्हें जन्नत मिलेगी जहां वो अपनी हूरों के साथ भोग – विलास में हमेशा रहेंगे | संस्कार रहित अविकसित मन और मस्तिष्क के लिए यह प्रलोभन बड़ा ही लुभावना है, जो उनके कुछ सोचने – समझने की क्षमता को भी कुंठित कर देता है | इस लेख में, हम उनके प्रथम प्रश्न – बहुविवाह प्रथा का विश्लेषण करेंगे |
डा. जाकिर नाइक यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि हिन्दू धर्म मूलतः ही बहुविवाह वादी है | अपनी किताब के पृष्ठ ४ पर वह कहते हैं -
“इस पृथ्वी पर स्पष्टतः कुरान ही एक मात्र धार्मिक पुस्तक है जो कहती है कि ‘ सिर्फ एक से शादी करो ‘ | कोई और धार्मिक पुस्तक ऐसी नहीं जिसमें पुरुषों को सिर्फ एक ही पत्नी की आज्ञा हो | कुछ अन्य धर्म ग्रंथों में चाहे वो वेद हों, रामायण, महाभारत, गीता, या बाइबिल हो क्या पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध है ? इन धर्म ग्रंथों के अनुसार कोई व्यक्ति जितनी चाहे शादियां कर सकता है | यह तो बाद में ही, हिन्दू धर्माचार्यों ने और ईसाई चर्च ने पत्नियों की संख्या को एक तक सीमित किया | कई हिन्दू धार्मिक व्यक्तित्व उनके धर्म ग्रंथों के अनुसार अनेक पत्नियां रखते थे | राम के पिता राजा दशरथ की एक से ज्यादा पत्नियां थीं | कृष्ण की अनेक पत्नियां थीं | ” आगे उन्होंने जनगणना के ऐसे आंकड़े दिए हैं जिनके स्रोत सिर्फ वही जानते हैं और जिनके मुताबिक हिन्दुओं में बहुविवाह अधिक प्रचलित है बजाए मुस्लिमों के |“
जाकिर नाइक के इस्लाम में बहुपत्नीत्व के वास्तव में मायने क्या हैं ? पूरी उम्र के दौरान कुल मिलाकर चार बीवियों से शादी करना या बीवियों की कुल संख्या को एक समय में चार तक ही बनाए रखना और उस के लिए पुरानी बीवी / बीवियों को तलाक देते जाना और नई शादियां करते जाना या जिन पर इलहाम हुआ हो उनके लिए ९, ११, १६ या उस से भी ज्यादा बीवियों का खास प्रावधान होना या कम उम्र की बच्चियों तक से शादी करना या फिर ऐसी अमर्यादित संख्या में बांदियाँ रखना – जिन्हें कानूनन बीवियों में शुमार न किया जा सके और जनगणना के साथ भी छलावा किया जा सके ?
हम इस पर चर्चा नहीं करेंगे | यह मुद्दे बहुत अधिक संख्या में लोगों द्वारा जिन में महिला अधिकार संगठन और मुस्लिम भी शामिल हैं, तमाम दुनिया में उठाये जा रहे हैं | इन्टरनेट पर इन सन्दर्भों की लंबी फ़हरिस्त मौजूद है | हमारे लेख का मकसद इस मिथक को नष्ट करना है कि ” हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार कोई व्यक्ति जितनी चाहे शादियां कर सकता है | “
आइए, शुरुआत वेदों से करें क्योंकि हिन्दू धर्म में वेदों की मान्यता सर्वोपरि है —-
१.समग्र वेदों में एक भी मंत्र ऐसा नहीं है, जिस में एक से अधिक पत्नी या पति के समर्थन का ज़रा संकेत भी हो |
२. ऋग्वेद के तीनों मंत्र ( १।१२४।७, ४।३।२ तथा १०।७१।४) वर्णित करते हैं – ‘ जाया पत्य उशासी सुवासा ‘ अर्थात विद्या विद्वानों के पास उसी प्रकार आती है जैसे एक समर्पित हर्षदायिनी पत्नी सिर्फ अपने पति को ही प्राप्त होती है| ‘ जाया’ तथा ‘ पत्य’ क्रमशः पत्नी तथा पति का अर्थ रखते हैं | यह दोनों शब्द एकवचन में प्रयुक्त हुए हैं, जो सिर्फ एक पति और एक पत्नी के आदर्श रिश्ते को प्रस्तुत करते हैं |
३. ऋग्वेद १। ३ ।३ में परमात्मा को पवित्र और उच्च आचरण वाली समर्पित पत्नी की उपमा दी गई है, जिस में एक पत्नीत्व का आदर्श भी अन्तर्निहित है |
४. ऋग्वेद का मंत्र १०। १४९। ४ भगवन और भक्त के मध्य प्रेम की तुलना समार्पित पत्नी और पति के प्रेम से करता है | यहां ‘ जाया’ अर्थात पत्नी और ‘ पतिम’ अर्थात पति दोनों ही शब्दों का प्रयोग एकल संख्या में हुआ है, जो स्पष्टतः एक विवाह को सुनिश्चित करता है |
५. ऋग्वेद १०।८५।२० में वधू के लिए निर्देश है कि वह अपने पति के लिए सुख की वृद्धि करे, यहां भी पति और पत्नी दोनों का उल्लेख एकवचन में हुआ है |
६.ऋग्वेद १०।८५।२३ पत्नी और पति को सदैव आत्म- संयम के पालन की शिक्षा देता है | यहां प्रत्यक्षतः दोनों के लिए आत्म- संयम का उल्लेख है और पत्नी और पति दोनों शब्दों का प्रयोग एकल संख्या में हुआ है जो केवल एक विवाह की सिफ़ारिश करता है |
७.विवाह से संबंधित सभी मंत्र द्विवचन सूचक शब्द दंपत्ति को संबोधित करते हैं, जो एक ही पत्नी और एक ही पति के रिश्ते को व्यक्त करता है | जिस के कुछ उदाहरण ऋग्वेद १०।८५।२४, १०।८५।४२ तथा १०।८५।४७ हैं , अथर्ववेद के लगभग सम्पूर्ण १४ वें कांड में विवाह विषयक वर्णन में इसका उपयोग हुआ है | प्रायः मंत्रों में जीवन पर्यंत एकनिष्ठ सम्बन्ध की प्रार्थना की गई है |
कृपया ध्यान दें, संस्कृत में एकवचन और बहुवचन से पृथक द्विवचन का प्रयोग है, ताकि किसी भ्रम की गुंजाइश ना रहे |
८. अथर्ववेद ७।३६।१ में पति – पत्नी परस्पर कामना करते हैं – ” मुझ को ह्रदय में स्थान दो,जिस से हम दोनों का मन भी सदा साथ रहे | ”
९. अथर्ववेद ७।३८।४ में पत्नी की यह हार्दिक अभिलाषा व्यक्त की गई है कि ” तुम केवल मेरे हो अन्य स्त्रियों की चर्चा भी न करो | ” इससे अधिक बहुपत्नीत्व का निषेध क्या होगा ?
१०. अथर्ववेद ३।३०।२ तथा १४।२।६४ पति और पत्नी को परस्पर समर्पित तथा एकनिष्ठ रहने की हिदायत देते हैं |
११. संभवतः वेदों के ज्ञान प्रदाता परम पिता परमात्मा को भी इस बात का अंदेशा था कि कुछ बन बैठे विशेषज्ञ इस सब की भी अवज्ञा कर के बहुविवाह का औचित्य सिद्ध करने की कोशिश करेंगे, अतः वेदों के कुछ मंत्रों में बहुविवाह के दुष्परिणामों का वर्णन आया है |
a. ऋग्वेद १०। १०५।८ एक से अधिक पत्नीयों की मौजूदगी को अनेक सांसारिक आपदाओं के सादृश्य कहता है |
b. ऋग्वेद १०। १०१ ।११ कहता है – दो पत्नियों वाला व्यक्ति उसी प्रकार दोनों तरफ़ से दबाया हुआ विलाप करता है, जैसे रथ हांकते समय उस के अरों से दोनों ओर जकड़ा हुआ घोड़ा हिनहिनाता है |
c. ऋग्वेद १०। १०१ । ११ के अनुसार दो पत्नियां जीवन को निरुदेश्य बना देती हैं |
d. अथर्ववेद ३ । १८।२ में प्रार्थना है - कोई भी स्त्री सह – पत्नी के भय का कभी सामना न करे |
e. वेदों में बहुविवाह का आरोप लगने वाले अक्सर ऋग्वेद के मंत्र ८। १९ ।३६ का सहारा लेते हैं | ऋग्वेद का यह मंत्र ” वधूनाम” तथा “सतपति” शब्दों को समाहित करता है, परन्तु यहां ‘वधू’ से तात्पर्य दुल्हन से न हो कर सुख प्रदान करने के सामर्थ्य से है और “सतपति” का अर्थ सज्जनों का पालक है जैसे “भूपति” अर्थात पृथ्वी का पालक होता है | जिस सूक्त में यह मंत्र आया है उसके देवता अथवा मूल भाव से भी व्यक्त होता है कि यह परोपकार तथा दान (दान- स्तुति) से संबंधित है | मंत्र का अर्थ है कि ईश्वर सत्य और भलाई की रक्षा करने वालों को विविध सामर्थ्य प्रदान करता है |
हिन्दुत्व पर डा.जाकिर नाइक के इरादों को लेकर प्रकाशित हमारे विश्लेषण के तुरंत बाद कई ज़हर भरे सन्देश आए, साथ ही उनकी किताब “Answers to Non- Muslims’ Common Questions about Islam” की एक प्रति भी मिली, जो उनके छली तर्कों का एक और बेहतरीन नमूना पेश करती है | हम उनके भाषणों की झलक भी देख चुके हैं, जिन में वे अपनी किताब का पाठ करते नजर आते हैं| वैसे इस किताब के कई खंडन पहले ही उपलब्ध हैं |
हिंदुत्व के प्रति मिथ्या अवधारणाओं में बढ़ोतरी करने की उनकी इस स्वयं घोषित शोध की साज़िश से हमें आपत्ति है | मुस्लिमों के लिए लिखे गये उनके लेख में हिंदुत्व की अधिक चर्चा रहती है तथा हिंदुत्व के लेख में इस्लाम का ज्यादा बख़ान होता है ( देखें FAQ on Hinduism)| मैं समझ सकता हूं कि उस की इस चकराहट का असल तथ्य वर्तमान की राजनितिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियां हैं जो ८० करोड़ हिन्दुओं के धर्मान्तरण का आसान आधार उपलब्ध कराती हैं | जिसके लिए डा. जाकिर नाइक द्वारा संचालित इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन और पीस टी.वी प्रयत्नशील हैं और कुछ महीनों पहले ऐलान भी कर चुके हैं कि वे आगामी पांच वर्षों में हिंदुस्तान को दारुल- इस्लाम बनाएंगे|
इसके अलावा, बहुत से भटकों को इस भविष्यवाणी पर विश्वास है कि भारत को पराजित करने पर ही ईसा मसीह फिर से आ पाएंगे और इस दुनिया का अंत होगा, जिस के बाद कयामत के दिन उन्हें जन्नत मिलेगी जहां वो अपनी हूरों के साथ भोग – विलास में हमेशा रहेंगे | संस्कार रहित अविकसित मन और मस्तिष्क के लिए यह प्रलोभन बड़ा ही लुभावना है, जो उनके कुछ सोचने – समझने की क्षमता को भी कुंठित कर देता है | इस लेख में, हम उनके प्रथम प्रश्न – बहुविवाह प्रथा का विश्लेषण करेंगे |
डा. जाकिर नाइक यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि हिन्दू धर्म मूलतः ही बहुविवाह वादी है | अपनी किताब के पृष्ठ ४ पर वह कहते हैं -
“इस पृथ्वी पर स्पष्टतः कुरान ही एक मात्र धार्मिक पुस्तक है जो कहती है कि ‘ सिर्फ एक से शादी करो ‘ | कोई और धार्मिक पुस्तक ऐसी नहीं जिसमें पुरुषों को सिर्फ एक ही पत्नी की आज्ञा हो | कुछ अन्य धर्म ग्रंथों में चाहे वो वेद हों, रामायण, महाभारत, गीता, या बाइबिल हो क्या पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध है ? इन धर्म ग्रंथों के अनुसार कोई व्यक्ति जितनी चाहे शादियां कर सकता है | यह तो बाद में ही, हिन्दू धर्माचार्यों ने और ईसाई चर्च ने पत्नियों की संख्या को एक तक सीमित किया | कई हिन्दू धार्मिक व्यक्तित्व उनके धर्म ग्रंथों के अनुसार अनेक पत्नियां रखते थे | राम के पिता राजा दशरथ की एक से ज्यादा पत्नियां थीं | कृष्ण की अनेक पत्नियां थीं | ” आगे उन्होंने जनगणना के ऐसे आंकड़े दिए हैं जिनके स्रोत सिर्फ वही जानते हैं और जिनके मुताबिक हिन्दुओं में बहुविवाह अधिक प्रचलित है बजाए मुस्लिमों के |“
जाकिर नाइक के इस्लाम में बहुपत्नीत्व के वास्तव में मायने क्या हैं ? पूरी उम्र के दौरान कुल मिलाकर चार बीवियों से शादी करना या बीवियों की कुल संख्या को एक समय में चार तक ही बनाए रखना और उस के लिए पुरानी बीवी / बीवियों को तलाक देते जाना और नई शादियां करते जाना या जिन पर इलहाम हुआ हो उनके लिए ९, ११, १६ या उस से भी ज्यादा बीवियों का खास प्रावधान होना या कम उम्र की बच्चियों तक से शादी करना या फिर ऐसी अमर्यादित संख्या में बांदियाँ रखना – जिन्हें कानूनन बीवियों में शुमार न किया जा सके और जनगणना के साथ भी छलावा किया जा सके ?
हम इस पर चर्चा नहीं करेंगे | यह मुद्दे बहुत अधिक संख्या में लोगों द्वारा जिन में महिला अधिकार संगठन और मुस्लिम भी शामिल हैं, तमाम दुनिया में उठाये जा रहे हैं | इन्टरनेट पर इन सन्दर्भों की लंबी फ़हरिस्त मौजूद है | हमारे लेख का मकसद इस मिथक को नष्ट करना है कि ” हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार कोई व्यक्ति जितनी चाहे शादियां कर सकता है | “
आइए, शुरुआत वेदों से करें क्योंकि हिन्दू धर्म में वेदों की मान्यता सर्वोपरि है —-
१.समग्र वेदों में एक भी मंत्र ऐसा नहीं है, जिस में एक से अधिक पत्नी या पति के समर्थन का ज़रा संकेत भी हो |
२. ऋग्वेद के तीनों मंत्र ( १।१२४।७, ४।३।२ तथा १०।७१।४) वर्णित करते हैं – ‘ जाया पत्य उशासी सुवासा ‘ अर्थात विद्या विद्वानों के पास उसी प्रकार आती है जैसे एक समर्पित हर्षदायिनी पत्नी सिर्फ अपने पति को ही प्राप्त होती है| ‘ जाया’ तथा ‘ पत्य’ क्रमशः पत्नी तथा पति का अर्थ रखते हैं | यह दोनों शब्द एकवचन में प्रयुक्त हुए हैं, जो सिर्फ एक पति और एक पत्नी के आदर्श रिश्ते को प्रस्तुत करते हैं |
३. ऋग्वेद १। ३ ।३ में परमात्मा को पवित्र और उच्च आचरण वाली समर्पित पत्नी की उपमा दी गई है, जिस में एक पत्नीत्व का आदर्श भी अन्तर्निहित है |
४. ऋग्वेद का मंत्र १०। १४९। ४ भगवन और भक्त के मध्य प्रेम की तुलना समार्पित पत्नी और पति के प्रेम से करता है | यहां ‘ जाया’ अर्थात पत्नी और ‘ पतिम’ अर्थात पति दोनों ही शब्दों का प्रयोग एकल संख्या में हुआ है, जो स्पष्टतः एक विवाह को सुनिश्चित करता है |
५. ऋग्वेद १०।८५।२० में वधू के लिए निर्देश है कि वह अपने पति के लिए सुख की वृद्धि करे, यहां भी पति और पत्नी दोनों का उल्लेख एकवचन में हुआ है |
६.ऋग्वेद १०।८५।२३ पत्नी और पति को सदैव आत्म- संयम के पालन की शिक्षा देता है | यहां प्रत्यक्षतः दोनों के लिए आत्म- संयम का उल्लेख है और पत्नी और पति दोनों शब्दों का प्रयोग एकल संख्या में हुआ है जो केवल एक विवाह की सिफ़ारिश करता है |
७.विवाह से संबंधित सभी मंत्र द्विवचन सूचक शब्द दंपत्ति को संबोधित करते हैं, जो एक ही पत्नी और एक ही पति के रिश्ते को व्यक्त करता है | जिस के कुछ उदाहरण ऋग्वेद १०।८५।२४, १०।८५।४२ तथा १०।८५।४७ हैं , अथर्ववेद के लगभग सम्पूर्ण १४ वें कांड में विवाह विषयक वर्णन में इसका उपयोग हुआ है | प्रायः मंत्रों में जीवन पर्यंत एकनिष्ठ सम्बन्ध की प्रार्थना की गई है |
कृपया ध्यान दें, संस्कृत में एकवचन और बहुवचन से पृथक द्विवचन का प्रयोग है, ताकि किसी भ्रम की गुंजाइश ना रहे |
८. अथर्ववेद ७।३६।१ में पति – पत्नी परस्पर कामना करते हैं – ” मुझ को ह्रदय में स्थान दो,जिस से हम दोनों का मन भी सदा साथ रहे | ”
९. अथर्ववेद ७।३८।४ में पत्नी की यह हार्दिक अभिलाषा व्यक्त की गई है कि ” तुम केवल मेरे हो अन्य स्त्रियों की चर्चा भी न करो | ” इससे अधिक बहुपत्नीत्व का निषेध क्या होगा ?
१०. अथर्ववेद ३।३०।२ तथा १४।२।६४ पति और पत्नी को परस्पर समर्पित तथा एकनिष्ठ रहने की हिदायत देते हैं |
११. संभवतः वेदों के ज्ञान प्रदाता परम पिता परमात्मा को भी इस बात का अंदेशा था कि कुछ बन बैठे विशेषज्ञ इस सब की भी अवज्ञा कर के बहुविवाह का औचित्य सिद्ध करने की कोशिश करेंगे, अतः वेदों के कुछ मंत्रों में बहुविवाह के दुष्परिणामों का वर्णन आया है |
a. ऋग्वेद १०। १०५।८ एक से अधिक पत्नीयों की मौजूदगी को अनेक सांसारिक आपदाओं के सादृश्य कहता है |
b. ऋग्वेद १०। १०१ ।११ कहता है – दो पत्नियों वाला व्यक्ति उसी प्रकार दोनों तरफ़ से दबाया हुआ विलाप करता है, जैसे रथ हांकते समय उस के अरों से दोनों ओर जकड़ा हुआ घोड़ा हिनहिनाता है |
c. ऋग्वेद १०। १०१ । ११ के अनुसार दो पत्नियां जीवन को निरुदेश्य बना देती हैं |
d. अथर्ववेद ३ । १८।२ में प्रार्थना है - कोई भी स्त्री सह – पत्नी के भय का कभी सामना न करे |
e. वेदों में बहुविवाह का आरोप लगने वाले अक्सर ऋग्वेद के मंत्र ८। १९ ।३६ का सहारा लेते हैं | ऋग्वेद का यह मंत्र ” वधूनाम” तथा “सतपति” शब्दों को समाहित करता है, परन्तु यहां ‘वधू’ से तात्पर्य दुल्हन से न हो कर सुख प्रदान करने के सामर्थ्य से है और “सतपति” का अर्थ सज्जनों का पालक है जैसे “भूपति” अर्थात पृथ्वी का पालक होता है | जिस सूक्त में यह मंत्र आया है उसके देवता अथवा मूल भाव से भी व्यक्त होता है कि यह परोपकार तथा दान (दान- स्तुति) से संबंधित है | मंत्र का अर्थ है कि ईश्वर सत्य और भलाई की रक्षा करने वालों को विविध सामर्थ्य प्रदान करता है |
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